Wednesday 30 January 2019

सौगातें

ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!

हो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!

लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......

रंग चटक, उनसे लेती हैं कलियाँ,
फिर मटक-मटक, खिलती हैं पंखुड़ियां,
और लटक झूलती ये टहनियाँ,
उस ओर ही, भटक जाती है दुनियाँ!

लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......

स्वर्णिम सा, हो उठता है क्षितिज,
सरोवर में, मुखरित हो उठते हैं वारिज,
खुश्बूओं में, वो ही हैं काबिज,
हर शै, होता उनसे ही परिभाषित!

लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......

उनकी बातें, उनकी ही धड़कन,
उनकी होठों का, कर्ण-प्रिय सा कंपन,
मधु-प्रिय, चूड़ी की खन-खन,
हर क्षण सरगम, लगता है आंगन!

ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 02 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. मधु-प्रिय बातें

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रकाश जी।

      Delete
  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी।

      Delete
  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.01.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3233 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय दिलबाग विर्क जी।

      Delete
  5. स्वर्णिम सा, हो उठता है क्षितिज,
    सरोवर में, मुखरित हो उठते हैं वारिज,
    खुश्बूओं में, वो ही हैं काबिज,
    हर शै, होता उनसे ही परिभाषित!

    लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
    सादर

    ReplyDelete
  6. उनकी बातें, उनकी ही धड़कन,
    उनकी होठों का, कर्ण-प्रिय सा कंपन,
    मधु-प्रिय, चूड़ी की खन-खन,
    हर क्षण सरगम, लगता है आंगन!
    ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
    सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!
    बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन...
    वाह!!!

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर पुरुषोत्तम जी. आज की भाग-दौड़ की ज़िन्दगी में ऐसे ख़ुशगवार रूमानी लम्हें हों तो फिर से जीने की तमन्ना कौन नहीं करेगा?

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया गोपेश्वर जी,आशीर्वचनों हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  8. बहुत ही सुंदर रचना आदरणीय

    हो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
    अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
    कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
    उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!

    लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें....

    ReplyDelete