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Saturday, 17 April 2021

सब्र

यूँ, सब्र के धागों को तुम तोड़ो ना!

हो, कितनी दूर, हकीकत, 
पर, मुमकिन है, सच को पा लें हम,
यूँ ही, खो जाने की बातें,
अब और करो ना!

सच से, यूँ ही आँखें तुम फेरो ना!

अन्धियारा, छा जाने तक,
चल, बुझता इक दीप, जला लें हम,
यूँ ही, घबराने की बातें, 
अब और करो ना!

यूँ ही, आशा का दामन छोड़ो ना!

जाना है, उन सपनों तक,
हकीकत ना बन पाए, जो अब तक,
यूँ, मुकर जाने की बातें,
अब और करो ना!

जज्ब से, जज्बातों को मोड़ो ना!

हो, कितनी दूर, हकीकत,
यूँ सच को, झुठलाए कोई कब तक,
यूँ ही, बैठ जाने की बातें,
अब और करो ना

यूँ, जीवन से आँखें तुम फेरो ना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)