बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....
बरसों हुए, अब-तक न भीगे!
रंग बारिशों के, है कैसे ये हमने न देखे?
कहते है, वो मेघ होते हैं पागल,
झमा-झम बरस जाएँ, न जाने ये किस पल!
पर भरोसे के, कब होते हैं बादल!
चल कहीं और चल....
बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....
आसमां पर, मेघों का छाना!
कल्पना है कोरी, या है ये कोई फ़साना!
सुना था, इठलाते हैं वो बादल,
यूँ कभी झूमकर, यूँ ही कहीं जाते हैं चल!
छोड़ कर पीछे, सूना सा आँचल!
चल कहीं और चल....
बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....
हैं अधूरे से, अपने सारे अरमाँ,
चल, ले आएं हम इक नया सा आसमां,
लहराना तुम, भींगा सा आँचल,
जरा भर लाना, नैनों में तुम, वो ही काजल!
इससे पहले, कि बिखर जाएँ हम!
चल कहीं और चल....
बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
चल कहीं और चल....
बरसों हुए, अब-तक न भीगे!
रंग बारिशों के, है कैसे ये हमने न देखे?
कहते है, वो मेघ होते हैं पागल,
झमा-झम बरस जाएँ, न जाने ये किस पल!
पर भरोसे के, कब होते हैं बादल!
चल कहीं और चल....
बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....
आसमां पर, मेघों का छाना!
कल्पना है कोरी, या है ये कोई फ़साना!
सुना था, इठलाते हैं वो बादल,
यूँ कभी झूमकर, यूँ ही कहीं जाते हैं चल!
छोड़ कर पीछे, सूना सा आँचल!
चल कहीं और चल....
बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....
हैं अधूरे से, अपने सारे अरमाँ,
चल, ले आएं हम इक नया सा आसमां,
लहराना तुम, भींगा सा आँचल,
जरा भर लाना, नैनों में तुम, वो ही काजल!
इससे पहले, कि बिखर जाएँ हम!
चल कहीं और चल....
बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा