सो गए, अरमान सारे,
दिन-रात हारे,
बिन तुम्हारे!
अधूरी , मन की बातें,
किसको सुनाते,
कह गए, खुद आप से ही,
बिन तुम्हारे!
झकोरे, ठंढ़े पवन के,
रुक से गए हैं,
छू गई, इक तपती अगन,
बिन तुम्हारे!
सुबह के, रंग धुंधले,
शाम धुंधली,
धुँधले हुए, अब रात सारे,
बिन तुम्हारे!
जग पड़ी, टीस सी,
पीड़ पगली,
इक कसक सी, उठ रही,
बिन तुम्हारे!
चुभ गई, ये रौशनी,
ये चाँदनी,
सताने लगी, ये रात भर,
बिन तुम्हारे!
पवन के शोर, फैले,
हर ओर,
सनन-सन, हवाएँ चली,
बिन तुम्हारे!
पल वो, जाते नहीं,
ठहरे हुए,
जज्ब हैं, जज्बात सारे,
बिन तुम्हारे!
रंग, तुम ही ले गए,
रहने लगे,
मेरे सपने , बेरंग सारे,
बिन तुम्हारे!
सो गए, अरमान सारे,
दिन-रात हारे,
बिन तुम्हारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)