Sunday 20 December 2015

वक्त ठहरता ही नही

वक्त ठहरता ही नही, आशाएं बढती ही जाती,
जीवन की इस गतिशीलता, बढ़ती महत्वाकांक्षाओं मे,
भावनाएं या तो पंख पा लेती हैं,
या फिर कुंठित हो जाती।

व्याकुल आंखे जीवन भर तलाशती रह जाती हैं उन्हे, 
जिनसे भावनाओं को समझने की उम्मीद हों बंधी,
वो मिल जाएं तो ठहराव आता है जीवन में,
कुछ कर गुजरने की तमन्ना जगती हैं

पर दिशाहीन भटकती आकांक्षाओें,
पल पल बढ़ती महत्वाकाक्षाओं के बीच,
वक्त ही कहां है शेष प्रीत की रीत निभाने को,
बचता है फिर कौन जीवन ज्योत जलाने को।

मुझे वो चेहरा पुनः मिल गया,
मन की आकांक्षाओं ने फिर ऊँची उड़ान भरी,
पर उसकी आकांक्षाएं, महत्वाकांक्षाए,
मेरी संवेदनाओं से कही अधिक ऊँची निकली

भावनाएं हुई हैं पुनः कुंठित,
चेतनाएँ हो चुकी हैं शून्य मतिहीन,
जीवन लगने लगी है दिशाहीन,
क्युंकि वक्त ही नही उसके पास भी ।

इन्सानी उम्र की अपनी है सीमा,
वक्त के लम्हे बचे हैं बस गिने चुने,
आशाओं के तो हैं पर लगे हुए,
पर वक्त ठहरता ही नही, बस हम गुजर जाते है
अधूरी अपूरित इक्षाओं के साथ.........

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