Tuesday 22 December 2015

तुम लौट आओ

प्रिय तुम सुनो मेरी आवाज...
कहीं हवा में है घुली- घुली सी....
तुम गुजरो यादों के गलियारे से..
मेरी परछांईयां तुम्हें वहां भी मिलेंगी...
आज भी शामिल हूँ यादों मे तेरे..
कही न कही मैं संग तुम्हारी राह में.....

मेरी आंखें रोकती है तुम्हारे बढ़ते कदम,
लौट जाती हो तुम, क्या अब भी डरते हो...
उन घनी पलकों की छावों से......
सुनती हो तुम.. मेरी खामोशी..
मेरी पलकों से गिरते शीशे चुभते है तेरे पांव में...
दर्द होता है तुम्हें .... मेरे दर्द से..

अनछूआ सा वो रिश्ता..छूता है तुम्हें...
थाम हाथ तुम्हारा, करता है जिद ..
वजूद मेरा शामिल है तेरी रूह में...
लौट आओगे तुम फ़िर कभी.....
निभाने रिश्ते पुराने...बिताने गुजरे ज़माने....
मेरे ख्वाब रखे हैं मैनें संभाले तुम्हारे सिरहाने..

ढूंढता हूँ हर चेहरे में तेरा अक्श,
करने लगता हूँ प्यार उस शक्श से,
पर मिलती नही मुझे वो राहत,
तुम लौट आओ ,,,तुम लौट आओ.....

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