Tuesday 2 March 2021

कितनी रात बुनता

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

वो ही, अल्हड़ सी रात, 
कहती रही, सिर्फ, अपनी ही बात,
मनमर्जियाँ, मनमानियाँ,
कौन, मेरी सुनता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

आँखें, नींद से बोझिल,
पर, कहीं दूर, पलकों की मंजिल,
उन निशाचरों की वेदना,
और कैसे, सुनता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

वो तम था, या तमस!
दूर था बहुत, वो कल का दिवस,
गहराते, रातों के सन्नाटे,
कौन, चुन लेता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

लब्ध था, वो आकाश,
पर, आया ना, वो भी अंकपाश,
टिम-टिमाते से, वो तारे,
क्यूँ कर, देखता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

थी, ढ़ुलकती सी नींद,
ये पलकें, होने लगी थी उनींद,
सो गया, तान कर चादर,
कितना, जागता!

और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

24 comments:

  1. वो ही, अल्हड़ सी रात,
    कहती रही, सिर्फ, अपनी ही बात,
    मनमर्जियाँ, मनमानियाँ,
    कौन, मेरी सुनता... बहुत सुंदर रचना

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    1. आदरणीया शकुन्तला जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को     "चाँदनी भी है सिसकती"  (चर्चा अंक-3994)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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    1. आदरणीय मयंक सर, आपकी चिन्ता बिल्कुल सत्य है। फिर भी, मेरा ख्याल है, पाठक अच्छी रचनाओं की तलाश में पटल पर आते ही रहेंगे। आप का प्रयास अतुलनीय व सराहनीय है। आभार।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 मार्च 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय

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    1. आदरणीया अभिलाषा जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  5. बहुत खूबसूरत रचना

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    1. आदरणीया भारती जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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    1. आदरणीय शान्तनु जी,बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।।

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  7. बहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई हो

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    1. आदरणीया ज्योति जी, मेरे इस पटल पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित और उत्साहित हूैं। साअःर आभार।

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    1. आदरणीया 'अंजान' जी, इस पटल पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित और उत्साहित हूैं। सादर आभार।

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  9. Replies
    1. आदरणीया माथुर जी, आपके प्रेरक शब्दों हेतु आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  10. सुंदर सार्थक सृजन के लिए बधाई

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    1. आदरणीया डा. वर्षा जी, आपके उत्साहवर्धन हेतु आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  11. वो ही, अल्हड़ सी रात,
    कहती रही, सिर्फ, अपनी ही बात,
    मनमर्जियाँ, मनमानियाँ,
    कौन, मेरी सुनता!


    एक सजीव रचना ।
    सुंदर।

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    1. आदरणीया सधु जी, प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।

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  12. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. आदरणीय ओंकार जी, बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ।

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