Saturday, 6 March 2021

तब मानव कहना

जग जाएगी जब, सुसुप्त चेतना,
उत्थान, उसी दिन होगा तेरा,
तब, खुद को तुम,
मानव कहना!

सृष्टि के, धरोहर तुम,
विधाता की, रचनाओं में, मनोहर तुम,
पर हो अधूरा, एक सोहर तुम,
जग जाएगी जब, सुप्त संवेदना,
विहान, उसी दिन होगा तेरा,
खुद को, तब तुम,
मानव कहना!

तुम्हीं में, परब्रम्ह रमे,
रमी, दशों दिशाओं की आशा तुझ में, 
अनंत रमी, इक यात्रा तुझ में,
हलाहल, जब तुम ये पी जाओगे,
कल्याण, उसी दिन होगा तेरा,
खुद को, तब तुम,
मानव कहना!

नर-नारायण तुम ही,
दीन-हीन के, जन-नायक हो तुम ही,
हो अंधियारों में, लौ तुम ही,
काँटे जीवन के, जब बुन जाओगे,
पहचान, उसी दिन होगा तेरा,
खुद को, तब तुम,
मानव कहना!

सर्वगुण, सम्पन्न तुम,
फिर भी, हर दुख के हो आसन्न तुम,
कहाँ रह सके, अक्षुण्ण तुम!
इन पीड़ाओं को, जब हर जाओगे,
उन्वान, उसी दिन होगा तेरा,
खुद को, तब तुम,
मानव कहना!

जग जाएगी जब, सुसुप्त चेतना,
उत्थान, उसी दिन होगा तेरा,
तब, खुद को तुम,
मानव कहना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना बधाई हो 🌹

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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  2. मानव अधूरा सोहर। लेकिन उसकी कृति ये सबसे निराली और उत्तम।
    वाह गजब बात है ये
    बहुत खूबसूरत रचना।
    गुजरे वक़्त में से...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-03-2021) को    "किरचें मन की"  (चर्चा अंक- 3998)     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 06 मार्च 2021 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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  6. बहुत सुंदर भाव । आज मानव अपनी सोच , अपने कर्म से पतन की ओर अग्रसर है ।एक चेतना जगाती हुई सुंदर रचना ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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  7. अति उत्तम रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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  8. बहुत ही सुंदर सृजन सर।
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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  9. तुम्हीं में, परब्रम्ह रमे,
    रमी, दशों दिशाओं की आशा तुझ में,
    अनंत रमी, इक यात्रा तुझ में,
    हलाहल, जब तुम ये पी जाओगे,
    कल्याण, उसी दिन होगा तेरा,
    खुद को, तब तुम,
    मानव कहना!


    बेहतरीन रचना...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ आपका।

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