Friday 30 April 2021

जा, अप्रिल तू जा

झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!

कटीली तेरी यादें, कठिन है भुला दें,
बोए तूने, इतने काँटे,
फूलों संग, घर-घर तूने दु:ख बाँटे,
जा, अब याद मुझे न आ,
जा, अप्रिल तू जा!

दूभर है, तुझ संग ये दिन निभ जाए,
बैरी ये पल कट जाए,
हर क्षण, कितने धोखे हमने खाए,
ना, अब सपनों में बहला,
जा, अप्रिल तू जा!

तू, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
यूँ, अपनों से बिछड़न,
जीवन भर, जीवन खोने का गम,
जा, ना यूँ मन को बहला,
जा, अप्रिल तू जा!

झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

30 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 02 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सादर प्रणाम सर 🙏

    ReplyDelete
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०१-०५ -२०२१) को 'सुधरेंगे फिर हाल'(चर्चा अंक-४०५३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete

  5. तू, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
    यूँ, अपनों से बिछड़न,
    जीवन भर, जीवन खोने का गम,
    जा, ना यूँ मन को बहला,
    जा, अप्रिल तू जा!..अन्तर्मन की व्यथा कहती हुई उत्कृष्ट रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. विनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी।

      Delete
  6. अभी तो अप्रैल के साथ मई में भी ऐसा ही डर बना हुआ है । सुंदर अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. विनम्र आभार आदरणीया संगीता जी। भविष्य की आशा ही, जीने की चाहत पैदा कर पाएगी।

      Delete
  7. अप्रैल से तो विदा ले ली पर अभी मई शेष है

    ReplyDelete
    Replies
    1. विनम्र आभार आदरणीया अनीता जी। सुखद भविष्य की आशा तो करनी ही पड़ेगी हमें।

      Delete
  8. शब्द-शब्द में अंतर्भेदी चुभन । टीस उठाती हुई ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. विनम्र आभार आदरणीया अमृता तन्मय जी।

      Delete
  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  10. सच में सर इस साल अप्रैल का महीना अभी तक मेरे जीवन का सबसे कठिन समय था।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिलकुल, प्रीति जी। पर मेरा मानना है कि समय को करवट लेते भी देर नहीं लगती है।
      बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। ।।।
      स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।

      Delete
  11. बहुत ही कठिन रचना और शायद अपनी पहचान आप आदरणीय पुरुषोत्तम जी। अप्रैल के माह को अंग्रेजी साहित्य में निर्दयी माह कहा गया है पर अब भी अप्रैल बहुत दर्दनाक यादें देककर रुखसत हुआ है सो इसे फटकार और दुत्कार जायज़ है। व्यथित कवि मन की असीम पीड़ा छलकी है रचना में! भावपूर्ण रचना के लिए बधाई। अपना ख्याल रखें। सपरिवार सानंद , सकुशल रहें 🙏🙏💐💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, बिल्कुल। आप भी अपना और समस्त परिवार का ख्याल रखें।

      Delete
  12. तु, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
    यूँ, अपनों से बिछड़न,
    जीवन भर, जीवन खोने का गम,
    जा, ना यूँ मन को बहला,
    जा, अप्रिल तू जा!

    झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
    ओ, अप्रिल के फूल!
    👌👌👌👌🙏🙏

    ReplyDelete
  13. आदरणीय सर, बहुत ही मार्मिक और करुण रचना । अप्रैल के महीने के बहाने, इस नव-वर्ष में कोरोना के लौट आने से जो निराश और दुख जन-जन के मन में है , उसे बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया है पर आशा है की इस वर्ष जैसे जैसे समय बीतेगा, यह कोरोना भागता हुआ नजर आएगा । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर टिप्पणी हेतु धन्यवाद अनंता।

      Delete
  14. कटीली तेरी यादें, कठिन है भुला दें,
    बोए तूने, इतने काँटे,
    फूलों संग, घर-घर तूने दु:ख बाँटे,
    जा, अब याद मुझे न आ,
    जा, अप्रिल तू जा!
    सही कहा ये अप्रैल तो सचमुच दुख ही बाँट गया...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण सृजन
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, इस अप्रिल को भूलाना आसान नहीं। शायद आनेवाले कई अप्रिल ऐसे ही देखने को मिले।
      पर हमें चैतन्य होना होगा।
      विनम्र आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।

      Delete
  15. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. विनम्र आभार आदरणीया उर्मिला जी।

      Delete