Showing posts with label नैन. Show all posts
Showing posts with label नैन. Show all posts

Sunday 16 September 2018

बह जाते हैं नीर

जज्बातों में, बस यूँ ही बह जाते हैं नीर...

असह्य हुई, जब भी पीड़,
बंध तोड़ दे, जब मन का धीर,
नैनों से बह जाते हैं नीर,
बिन बोले, सब कुछ कह जाते हैं नीर...

नीर नहीं, ये है इक भाषा,
इक कूट शब्द, संकेत जरा सा,
सुख-दुख हो थोड़ा सा,
छलकते हैं, नैनों से बह जाते हैं नीर...

संयम, थोड़ा ना खुद पर,
ना धैर्य तनिक भी लम्हातों पर,
न जाने किन बातों पर,
जज्बातों में, बस यूँ बह जाते हैं नीर...

सम्भले ना, ये आँखों में,
तड़पाते हैं, आके तन्हा रातों में,
डूबोकर यूँ ख्यालों में,
किसी अंजान नगर, ले जाते हैं नीर...

भिगोते हैं भावों को नीर,
पिरोते है मन के भावों को नीर,
धोते हैं घावों को नीर,
बातों ही बातों में, भिगो जाते हैं नीर....

असह्य हुई, मन की पीड़,
बंध तोड़ रहे, अब मन का धीर,
बह चले अब नैनों से नीर,
कर संकेत, सब कुछ कह रहे हैं नीर...

जज्बातों में, बस यूँ ही बह जाते हैं नीर...

Wednesday 22 August 2018

अब कहाँ कोई सदा

अब कहाँ है कोई सदा, जो फिर से पुकारता.....

वो मृदु भाव कहाँ,
है कहाँ अब वो मृदुल कंठ,
पुकार ले जो स्नेह से,
है कहाँ अब वो कोकिल से कंठ...

वो सुख-चैन कहाँ,
कहाँ है अब वो सुखद आँखें,
मुड़कर जो दे सदाएं,
है कहाँ अब वो बोलती निगाहें...

अब वो नैन कहाँ,
जो पिघला दे रीतकर पत्थर,
कर जाए भाव प्रवण,
है कहाँ अब वो भाव निर्झर...

अब न है वो सदाएं,
सूनी सी है अब मेरी पनाहें,
है सुनसान सा वो डगर,
और है उधर ही मेरी निगाहें....

वियावान हुई हैं राहें!
या, वो आवाज है बेअसर!
मन कलपता है कहीं!
या मन बन चुका है पत्थर...

अब कहाँ है कोई सदा, जो फिर से पुकारता.....

Sunday 29 July 2018

भूलोगे कैसे

हर क्षण कण-कण मेरी याद दिलाएंगे......

वो सूनी राहें, वो बलखाते से पल,
बहते से लम्हे, ये हवाएं चंचल,
वो टूटे पत्ते, वो बिखरा सा आँचल,
यूं मुझमें खो जाओगे तुम,
बहते लम्हों संग, उड़ आओगे तुम,
मौसम के रंग बदलेंगे,
घटा घनघोर जमकर बरसेंगे,
भिगाएंगे, मन विरहाकुल कर जाएंगे....

हर क्षण कण-कण मेरी याद दिलाएंगे......

उड़-उड़कर कागा मुंडेरे पे आएंगे,
काँव-काँव कर संदेशे लाएंगे,
अकुलाहट आने की ये दे जाएंगे,
सोचोगे, राह तकोगे तुम,
सूनी राहों के पदचाप गिनोगे तुम,
कागा फिर फिर आएंगे,
मुंडेर चढ़ गाएंगे, चिढाएंगे,
तरसाएंगे, मन आकुल कर जाएंगे....

हर क्षण कण-कण मेरी याद दिलाएंगे......

कुहू-कुहू कोयल झुरमुट में गाएगी,
छुप-छुप विरहा ये सुनाएंगी,
यादें मेरी लेकर वो भी आएंगी,
मन ही मन, गाओगे तुम,
कुछ गीत मेरे, यूं दोहराओगे तुम,
सूने नैने छलक आएंगे,
कोयल, रुक-रुककर गाएंगे,
जलाएंगे, मन व्याकुल कर जाएंगे....

हर क्षण कण-कण मेरी याद दिलाएंगे......

Wednesday 18 July 2018

वजह ढूंढ लें

जीने की कुछ तो वजह होगी,
बेवजह ये साँसे न यूं ही चली होंगी,
न सीने में दर्द यूं ही जगा होगा,
ये आँसू न यूं ही आँखों मे भरा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

नैन बेचैन रहते हैं क्यूं रातभर,
दूर अपना कोई उनसे तो रहा होगा,
नीर नैनों से न यूं ही बहे होंगे,
नैनों से उस ने कुछ तो कहा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
चलो वजह वही हम ढूंढ लें.....

न यूं ही सजी होंगी ये वादियां,
ये पर्वत यूं ही एकाकी न हुआ होगा,
बर्फ शीष पर यूं ही न जमे होंगे,
धार बनकर नदी यूं ही न बही होगी,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

विहँसती हैं धूप में क्यूं पत्तियां,
पत्तियों का बदन भी तो जला होगा,
खिलते हैं हँसकर ये फूल क्यूं,
ये कांटा फूलों को भी तो चुभा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
चलो वजह वही हम ढूंढ लें.....

जीने की कुछ तो वजह होगी,
बेवजह न उभर आया होगा रास्ता,
कुछ कदम कोई तो चला होगा,
अकेला सारी उम्र न कोई रहा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

Friday 13 July 2018

जीवन्त पल

आदि है यही, इक यही है अन्त,
संग गुजारे है जो पल, बस वही है जीवन्त!

इक मृत शिला सा,
मैं था पड़ा,
राह के ठोकरों सा,
मैं था गिरा,
चंद आस्था के फूल लेकर,
स्नेह स्पर्श देकर,
जीवन्त तूने ही किया....

संग बीते पल कई,
स्नेह तेरा मिला,
अब नहीं मैं मृत शिला,
भाव पाकर,
जी उठा अब ये शिला,
देवत्व सा मिला,
तेरे ही मन्दिर में खिला....

अब धड़कते हैं हृदय,
इक कंपन सी है,
नैनों में नीर आकर है भरे,
छलका है मन,
प्रारब्ध है ये प्रेम की,
या है ये अन्त मेरा,
क्षण है यही जीवन्त मेरा.....

पतझड़ है यही, यही है बसन्त,
तुम संग जो गुजरे, पल वही है जीवन्त.....

Wednesday 4 July 2018

नीर थे वो

नीर थे वो, जो नैनों से छलककर बह गए.....

जज्ब थे ये नैन की कटोरियों में,
या हृदय की क्यारियों में,
वर्षों तलक, अर्सों से यहीं...
दफ्न थे ये सब्र की तिजोरियों में....

कुछ विष भरे दंश देकर,
मन में टीस के कुछ बीज बोकर, 
फिर कुरेदा है किसी ने,
इस हृदय की बंजर सी जमीं को....

सब्र का जब बांध टूटा,
यूं हृदय से धैर्य का हाथ छूटा,
सुबकते नैन में ये भर गए,
जज्ब थे ये, अचानक फूटकर ये बह गए..

नीर थे वो, यूं ही छलककर कुछ कह गए....

अब रिस रहे ये बंजर से हृदय में,
भर चुके मन की निलय में,
पाषाण जमी सिक्त हो चली...
सदय हो चला, बंजर सा ये हृदय....

कुछ बूंद नैनों में उतरकर,
टीस मन के कुछ हाथों से धोकर,
फिर से बांधा है इसी ने,
बंजर हृदय के टूटे हुए धैर्य को....

सब्र तब मन को मिला,
जब नीर बन ये नैनों से चला,
घनीभूत ये हृदय में रहे,
जज्ब से थे, द्रवीभूत हो टीस में बह गए...

नीर थे वो, यूं ही छलककर कुछ कह गए....

Monday 30 October 2017

हार-जीत

बयाँ कर गई मेरी बेबसी, उनसे मेरे आँखो की ये नमी!

नीर उनकी नैनों में, शब्द उनके होठों पे,
क्युँ लग रहे हैं बरबस रुके हुए?
शायद पढ़ लिया हैं उसने कहीं मेरा मन!
या मेरी आँखे बयाँ कर गई है बेबसी मेरे मन की!

घनीभूत होकर थी जमी,
युँ ही कुछ दिनों से मेरी आँखों में नमी,
सह सकी ना वेदना की वो तपिश,
गरज-बरस बयाँ कर गई, वो दबिश मेरे मन की!

ओह! मनोभाव का ये व्यापार!
संजीदगी में शायद, उनसे मैं ही रहा था हार!
संभलते रहे हँसकर वो वियोग में भी,
द्रवीभूत से ये नैन मेरे, कह गई सब मेरे मन की!

उनसे कह न पाते जो शब्द मेरे,
विस्तारपूर्वक कह गई थी उनसे मेरी नमी!
उस हार मे भी था जीत का एहसास,
विहँस रहे नैन उनके, समझ चुके वो मेरे मन की!

अब विहँसते हैं नैन उनके, समझते है वो मेरे मन की!

Saturday 7 May 2016

वो अतुल मिलन के रम्य क्षण

वो अतुल मिलन के रम्य क्षण छाए हैं अब दृग पर!

वो मिल रहा पयोधर,
आकुल हो पयोनिधि से क्षितिज पर,
रमणीक क्षणप्रभा आ उभरी है इक लकीर बन।

वो अतुल मिलन के रम्य क्षण छाए हैं अब दृग पर!

वो झुक रहा वारिधर,
युँ आकुल हो प्रेमवश नीरनिधि पर,
ज्युँ चूम रहा जलधर को प्रेमरत व्याकुल महीधर।

वो अतुल मिलन के रम्य क्षण छाए हैं अब दृग पर!

अति रम्य यह छटा,
बिखरे हैं मन की अम्बक पर,
खिल उठे हैं सरोवर में नैनों के असंख्य मनोहर।

वो अतुल मिलन के रम्य क्षण छाए हैं अब दृग पर!

Tuesday 19 April 2016

अधूरे सपने

अधूरे सपने ! ये संग-संग ही चलते है जीवन के!

अधूरे ही रह जाते कुछ सपने आँखों में,
कब नींद खुली कब सपने टूटे इस जीवन में,
कब आँख लगी फिर जागे सपने नैनों में।

अधूरे सपने ! सोते जगते साथ साथ ही जीवन में!

सपनों की सीमा कहीं उस दूर क्षितिज में,
पंख लगा उड़ जाता वो कहीं उस दूर गगण में,
कब डोर सपनों की आ पाई है हाथों में।

अधूरे सपने ! पतंगों से उड़ते जीवन के नील गगन में!

पलकों के नीचे मेरी सपनों का रैन बसेरा,
बंद होती जब ये पलकें सपनों का हो नया सवेरा,
अधूरे उन सपनो संग खुश रहता है मन मेरा।

अधूरे सपने ! ये प्यार बन के पलते हैं मेरे हृदय में।

Saturday 9 April 2016

मिल सकी न इक नजर

सजल नैनों से सजदा करता रहा मैं उम्र भर...........!

बुनते रहे धागे उम्मीदों के युँ ही उम्र भर,
झुकते रहे सजदे में उनके, सर युुँ ही उम्र भर,
इक झलक पाने को बैठे रहे, सजदे किए युँ उम्र भर,
आह निकली! पर मिल सकी ना बस तुम्हारी इक नजर!

इबादत बन सकी ना, सजदों का वो सफर,
तन्हाईयों मे उम्र गुजरी, खामोशियों में लम्बा सफर,
पूछ लूँगा मैं खुदा से मिल गया वो मुझको अगर,
आह निकली! पर मिल सकी ना क्युँ तुम्हारी इक नजर!

अब सजल हो चले हैं नैनों के अधखुले डगर,
बह रहे अविरल जलधार, डूबे हुए अब शामो शहर,
इन सजल नैनों से सजदा, युँ ही करता रहा मैं उम्र भर,
आह निकली! पर मिल सकी ना बस तुम्हारी इक नजर!

Thursday 24 March 2016

ये क्या कह गया तुमसे नशे में

ओह! आज मैं ये क्या कह गया तुमसे नशे में?

जाम महुए की पिला दी थी किसी नें,
उस पर धतूरे की भंग मिलाई थी किसी ने,
मुस्कुराकर शाम शबनमी बना दी थी आप ने,
उड़ गए थे होश मेरे, मन कहाँ रह गया था वश में।

ओह! आज मैं ये क्या कह गया तुमसे नशे में?

यूँ तो मैं पीता नही जाम हसरतों के,
पिला दी थी दोस्तों नें कई जाम फुरकतों के,
मुस्कुराए आप जो छलके थे जाम यूँ ही लबों पे,
होश में हम थे कहाँ, देखकर आपको सामने।

ओह! आज मैं ये क्या कह गया तुमसे नशे में?

ये दो नैन मयखाने से लग रहे आपके,
जाम कई हसरतों के छलकाए है यूँ आपने,
लड़खड़ाए मेरे कदम आपकी मुस्कुराहटों में,
उड़ चुके हैं होश मेरे, मन विवश आपके सामने।

ओह! आज मैं ये क्या कह गया तुमसे नशे में?

Monday 22 February 2016

कर्मपथ की ओर

तू नैन पलक अभिराम देखता किस ओर,
देख रहा वो जगद्रष्टा निरंतर तेरी ओर,
इस सच्चाई से अंजान तू देखता किस ओर।

तू कठपुतली है मात्र उस द्रष्टा के हाथों की,
डोर लिए हाथों मे वो खीचता बाँह तुम्हारी,
सपनों की अंजान नगर तू देखता किस ओर।

निरंकुश बड़ा वो जिसकी हाथों में तेरी डोरी,
अंकुश रखता जीवन पर खींचता डोर तुम्हारी,
उस शक्ति से अंजान तू सोचता किस ओर।

कर्मों के पथ का तू राही नैन तेरे उस ओर,
कर्मपथ पर निश्छल बढ़ता चल कर्मों की ओर,
मिल जाएगी तेरी मंजिल उस द्रष्टा की ओर।

Friday 12 February 2016

अमरत्व गरल अश्रुधार!

तुम अविरल अश्रुधार पोछ नही पाओगी!

एक अश्रु-धार नभ से होकर आती,
रुकती कहाँ सुनती कहाँ ये मन की,
निर्झर सी बस आँखों से बह जाती।

तुम अश्रुओं की भाषा पढ़ नही पाओगी!

अश्रु-धार बन कहती प्रेम की भाषा,
वेदना हृदय के आँखों से कह जाती,
थम जाती नैनों में ओस की बुंदों सी।

तुम कोलाहल अश्रुधार की सुन नही पाओगी!

सजते नैन सजल अश्रुधार अविरल,
सागर मंथन से ज्यों निकलता गरल,
हलाहल मन में क्यूँ जब नैन सजल?

तुम मंथन गरल नैनों की पी नही पाओगी!

नैन गरल पीकर अमरत्व पा जाऊँ,
सजल नैन नित्य अश्रुधार ले आऊँ,
निर्झर नैनों में प्रीत सदा भर जाऊँ।

तुम अमरत्व नैन गरल की पा नही पाओगी!

Wednesday 10 February 2016

विदाई के क्षण

छलकती हैं आँखों की देहरी पर नीर,
क्षण विदाई की घड़ियाँ के देती मन को चीर,
झरते हैं नैंनों से आँसू निर्झर सी रह रह,
नभ से झरते ओस की बूंदो की तरह।

क्षण अति कारुणामय होता है वह,
बिछड़ते मात, पिता, भाई बहन, बन्धु जब,
फफक फफक रो पड़ता हृदय तब,
देहरी बदल जाती जीवन की इस तरह।

विदाई नही सिर्फ एक जन की यह,
छूट जाते हैं रिश्ते, नाते, पड़ेसी, कुटुम्ब सब,
टीस दिलों की और बढ़ जाती तब,
नैन नीर अधीर हो बहती निर्झर की तरह।

रुके हुए शब्द

छलकते नैनों से बह गए हैं नीर निर्झर,
थरथराते लबों के शब्द गए हैं  निःशब्द,
ओस की बूंदों सी छलकी हैं नीर नीरव,
कहानी कोई अनकही रह गई है शायद।

झर झर निर्झर सी बह रही है अब आँखें,
खामोशियाँ की जुबाँ कह गई है सब बातें,
छलकते नीर शब्द बन गईं हैं अब लबों पे,
आह, दारुणिक कथा कितनी इन नैनों के।

रोक लेता कोई नीर, नैन छलकने से पहले,
निःशब्द को जुबाँ देता कोई कहने से पहले,
काँपते अधरों को शब्द दे जाता कोई पहले,
व्यथा कोई सुन लेता नैन छलकने से पहले।

Thursday 4 February 2016

दो नैन

चंद अल्फाज निकल गए तारीफ में आपकी,
 मचले हैं शबनमी लहर सुर्ख होठों पे आपकी,
शुरूर बन के छा गई नूर-ए-चांदनी हर तरफ,
बदल गई है रुत की मस्त रवानियाँ हर तरफ।

शर्मों हया का परदा उतरा है चाँदनी की नूर से,
बेखबर मचल रहे यूँ जज्बात दिलों की तीर से,
चाहुँ चुरा लूँ चँद शबनम बंद होठों से आपकी,
देखता रहूँ झुकी पलकों में ढ़ली हया आपकी।

आँखें दे गईं हैं अब पयाम जिन्दगी की नूर के,
कजरारे नैन बरबस तक रहे आस में हुजूर के,
तारीफ करता रहूँ मैं इन दो नैनों की आपकी,
उम्र मै गुजार दूँ तकते इन दो नैनों मे आपकी।