Saturday, 16 April 2016

अंजाना

कुछ अंजान से शक्ल जो, यादों मे ही बस हैं आते!

साँसों में इक आहट सी भरकर,
कहीं खो गया वो, अंजान राहों मे टूटकर,
अब समय ठहरा हुअा है शिला-सा,
निष्पलक लोचन निहारती, साँसों की वो ही डगर।

चल रही उच्छवास, आँधियों की वेग से,
कहीं खोया है अंजान वो, धड़कनों की परिवेश से,
वो क्षण कहाँ रुक सका है, समय की आगोश से,
हृदय अचल थम रहा है, उस अंजान की आहटों से।

शक्ल अंजान एेसे क्युँ हृदय में समाते?
समय हर पल गुजरता, क्षण कहाँ उसमें समाते,
निष्पलक नैन वो जहाँ अब, सपने कभी आते न जाते,
अब अंजान सा शक्ल वो, यादों मे ही सिर्फ आते।

Friday, 15 April 2016

आपके कदम

आप रख दें जो कदम, जिन्दगी हँस दे फिर वहाँ !

कदम आपके पडते हों जहाँ,
शमाँ जिन्दगी की जल उठती हैं वहाँ,
गुजरती हैं तुझसे ही होकर चाँदनी,
आपके साथ ही चला तारों का ये कारवाँ।

चाँद का रथ आपकी दामन के तले,
नूर उस चाँद का आपके साथ जले,
तेरी कदमों के संग निशाँ जिन्दगानी ये चले,
शमाँ जलती ही रहे जब तलक आप कहें।

तम के साए बिखरे हैं बिन आपके,
बुझ रहे हैं ये दिए बिन आस के,
बे-आसरा हो रहा चाँद बिन आपके,
जर्रे-जर्रे की रुकी है ये साँसे बिन आपके।

आप रख दें जो कदम, जिन्दगी हँस दे फिर वहाँ !

तन्हाई के ख्याल

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

ख्यालों के निर्झर सरिता मे वो बहती,
कलकल छलछल पलपल हरपल वो करती,
जाने किन शिखरों से चलकर वो आती,
झिलमिल सांझ ढ़ले किस सागर में मिल जाती,
ख्यालों के विरान महल में बस मैं और मेरी तन्हाई।

टकराती रह रह कर हृदय के इस तट पर,
शिलाओं सा टूटता रहता मैं तिल तिल घिस-घिस कर,
यादों के सैकत बिछ जाते हृदय के तल पर,
गहरा सा मन मेरा शिलाचूर्ण से फिर जाता भर,
कभी रुक जाते वो झील सी ख्यालों में बह बहकर।

खिल उठती कमल सी वो उस ठहरी झील मे,
समेटती अपनी चंचलता पलभर को अपने मन में,
बिखेरती वो सुंदर सी आभा उस उपवन में,
सपनों का वो घन सदियों से मेरे मन प्रांगण में,
इक ख्याल बन कर उभरता हर पल मेरी तन्हाई में।

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

Thursday, 14 April 2016

चुरा लुँगा तुमको तुम्ही से

हम सफर में हैं आपके, तू ही इस सफर की है मंजिल।

यूँ चुरा लूँगा तुम्ही से मैं तुमको,
ले जाऊँगा फिर तन्हाईयों में कही तुमको,
पूछेंगी पता तुम्हारा ये दुनियाँ कभी,
मेरे दिल की राहों का पता बता देना तुम उनको।

आऊँगा रोज ही तेरी तन्हाईयों मे मैं,
चुरा लुंगा तेरे ख्वाब सभी तेरी आँखों से मैं,
देखोगे कभी ख्वाब तो नजर आऊँगा मैं,
तेरे दिल की जज्बातों में महल बना जाऊँगा मैं।

कहता है दिल मुझसे आ के कभी मिल,
पूछ ले नजरों से मेरी क्युँ चुराए है तेरा दिल,
रास्ते प्यार के ये तू ही है मेरी मंजिल,
ख्वाबों में रोज मिली अब हकीकत मे आके मिल।

चुरा ले तू मुझसे ही मुझको, हम यहीं जाएँ कहीं मिल।

अनसुना कोई गीत

अनकहा कोई गीत गुनगुना लूँ मैं, ओ मन प्रीत मेरी!

यूँ तो आपने सुने होंगे गीत कई,
मिल जाएंगे आपको राहों में मीत कई,
कोई मिलता है कहाँ जो सुनाए अनकहा गीत कोई,
धड़कनों ने छेड़ी है मेरी इक संगीत नई,
आ सुना दूँ वो गजल तुझको, ओ मन मीत मेरी।

अनसुना कोई गीत गुनगुना लूँ मैं, ओ मन प्रीत मेरी!

तेरी धड़कनों में बजे होंगे संगीत कई,
कहने वालों ने कहे होंगे गजल-गीत कई,
दिल धड़कता है मेरा गा रहा अनसुना गीत कोई,
गुनगना लूँ मैं आपके सामने संगीत वही,
आ सुना दूँ वो गजल तुझको, ओ मन मीत मेरी।

नग्मा-ए-साज नया गुनगुना लूँ मैं, ओ मन प्रीत मेरी!

Wednesday, 13 April 2016

श्रृंगार

श्रृंगार ये किसी नव दुल्हन के, मन रिझता जाए!

कर आई श्रृंगार बहारें,
रुत खिलने के अब आए,
अनछुई अनुभूतियाें के अनुराग,
अब मन प्रांगण में लहराए!

सृजन हो रहे क्षण खुमारियों के, मन को भरमाए!

अमलतास यहां बलखाए,
लचकती डाल फूलों के इठलाए,
नार गुलमोहर सी मनभावन,
मनबसिया के मन को लुभाए।

कचनार खिली अब बागों में, खुश्बु मन भरमाए!

बहारों का यौवन इतराए,
सावन के झूलों सा मन लहराए,
निरस्त हो रहे राह दूरियों के,
मनसिज सा मेरा मन ललचाए।

आलम आज मदहोशियों के, मन डूबा जाए!

तू पथ मैं पथिक

पथ घुमावदार,
पथिक इन राहों का मैं अंजाना,
असंख्य मोड़ इन राहों पर,
पा लेता मैं मंजिल जीवन की,
गर छाँव तुम अपनी आँचल का मुझको देते।

पथ रसदार,
जीवन के इस रस से मैं अंजाना,
अनंत मधुरस इस पथ पर,
पी जाता मैं अंजुरी भर भरकर,
गर प्याला तुम अपनी नैनों का मुझको देतेे।

पथ पथरीला,
चुभते इन काटों से मैं अंजाना,
कंकड़ हजार इस पथ पर,
चल लेता मैं नुकीले पत्थर पर,
गर दामन तुम अपना मखमल सा मुझको देते।

पथ एकाकी,
एकाकीपन इस भीड़ का न जाना,
खोया भीड़ मे इस पथ पर,
ढ़ूंढ़ लेता मैं अपने आप को पथ पर,
गर बसंत तुम अपने सासों का मुझको देते।

पथ लम्बा भ्रामक,
जीवन के इस भ्रम से मैं अंजाना,
लम्बे पथ पर छोटा सा जीवन,
जी लेता मै जीवन के पल जी भरकर,
गर मुस्कान तुम अपने जीवन का मुझको देते।

तुम भी गा देते

फिर छेड़े हैं गीत,
पंछियों नें उस डाल पर,
कलरव करती हैं,
मधु-स्वर में सरस ताल पर,
गीत कोई गा देते,
तुम भी,
जर्जर वीणा की इस तान पर।

डाली डाली अब,
झूम रही है उस उपवन के,
भीग रही हैं,
नव सरस राग में,
अन्त: चितवन के,
आँचल सा लहराते,
तुम भी,
स्वरलहर बन इस जीवन पर।

फिर खोले हैं,
कलियों ने धूँघट,
स्वर पंछी की सुनकर,
बाहें फैलाई हैं फलक नें
रूप बादलों का लेकर,
मखमली सा स्पर्श दे जाते,
तुम भी,
स्नेहमयी दामन अपने फैलाकर।

Tuesday, 12 April 2016

बिखरे सपने

मेरे सपनों की माला में, सजते कुछ ऐसे मोती,
खुशियाँ बिखरती चहुँ ओर, प्रारब्ध इक जैसी होती!

जीवन ऐसे भी धरा पर, बिखरे हैं जिनके सपने,
टूटी हैं लड़ियाँ माला की, बस टीस बची है मन में,
चुन चुनकर मोतियों को, सहेज रखे हैं उसनें,
सपने हसीन लम्हों के, पर उनके जीवन से बेगाने।

प्रारब्ध ही कुछ ऐसा, नियति ही कुछ ऐसी,
खुशियों के असंख्य पल बस हाथों को छूकर गुजरी,
बुनते रहे वो लड़ियाँ ही, मोतियाँ सब दामन से फिसली,
माला उस जीवन की खुद ही टूट-टूट कर बिखरी।

ऎसे भी जीवन जग में, साँसें चँद मिली हैं जिनको,
कैसे होते हैं सुख के पल, झलक भी मिल सकी न उनको,
उनके भी तो जीवन थे, फिर जन्म मिली क्युँ उनको?
किन कर्मों की सजा, उस विधाता नें दी है उनको।

मेरे सपनों की माला में सजते कुछ ऐसे ही मोती,
सपने पूरे कायनात की सजती बस इक जैसी,
हसते खेलते सभी जीवन में, कोलाहल क्रंदन ये कैसी?
खुशियाँ बिखरती धरा पर, प्रारब्ध सब की इक जैसी!

Monday, 11 April 2016

मूक प्राण

मूक प्राणों के निर्णय क्या ऐसे तय होते हैं जीवन में?

गुमसुम सी सजनी वो हाथों में मेंहदी रचकर,
इक सशंक जिज्ञासा पलती मन के भीतर,
अपरिचित सी आहट हर पल मन के द्वारे पर,
क्या वो हल्दी निखरेगी सजनी के तन पर?

द्वार हृदय के बरबस खोल रखें हैं उस सजनी नें,
कठिन परीक्षा देनी है उसे इक अनजाने को,
अपनेपन की परिभाषा इक नई लिखनी है उसको,
क्या वो अपरिचित अपनाएगा उस भाषा को?

मुक्ति भाव खोए से है सजनी की जड़ आँखों में,
भविष्य धुमिल है उसकी घनघोर कुहासों में,
पाँव थमें है स्तंभ शेष से, असमंजस है उसके मन में,
क्या मूक प्राणों के निर्णय ऐसे होते हैं जीवन में?