ॠतुओं का अनवरत परिवर्तन....
क्या है ये.....
यह संधि है या है ये संधि विच्छेद?
अनवरत है या है क्षणिक प्रभेद,
कई टुकड़ों में है विभक्त,
या है ये अनुराग कोई अविभक्त,
कैसा ये क्रमिक अनुगमन.....
देखा है हमनें.....
संसृति का निरंतर निर्बाध परिवर्तन,
और बदलते ॠतुओं संग,
मुस्कुराती वादियों का मुरझाना,
कलकल बहती नदियों का सूख जाना,
बेजार होते चहकते दामन....
और फिर ...
उन्ही ऋतुओं का पुनः व्युत्क्रमण,
कोपलों का नवीकरण,
मद में डूबा प्यारा सा मौसम,
आगोश में फिर भर लेने का फन,
बहकता सा कुंवारा मन......
मैं इक कविमन...
उत्सुकता मेरी बढ़ती जाए हरक्षण,
शायद है यही सर्वश्रेष्ठ लेखन!
संसृति का ये श्रृंगार अनुपम,
यही तो है उत्कृष्ठ सौन्दर्य विमोचन,
ॠतुओं का क्रमिक परिवर्तन.....
सँवर रही हो जैसे दुल्हन....
क्या है ये.....
यह संधि है या है ये संधि विच्छेद?
अनवरत है या है क्षणिक प्रभेद,
कई टुकड़ों में है विभक्त,
या है ये अनुराग कोई अविभक्त,
कैसा ये क्रमिक अनुगमन.....
देखा है हमनें.....
संसृति का निरंतर निर्बाध परिवर्तन,
और बदलते ॠतुओं संग,
मुस्कुराती वादियों का मुरझाना,
कलकल बहती नदियों का सूख जाना,
बेजार होते चहकते दामन....
और फिर ...
उन्ही ऋतुओं का पुनः व्युत्क्रमण,
कोपलों का नवीकरण,
मद में डूबा प्यारा सा मौसम,
आगोश में फिर भर लेने का फन,
बहकता सा कुंवारा मन......
मैं इक कविमन...
उत्सुकता मेरी बढ़ती जाए हरक्षण,
शायद है यही सर्वश्रेष्ठ लेखन!
संसृति का ये श्रृंगार अनुपम,
यही तो है उत्कृष्ठ सौन्दर्य विमोचन,
ॠतुओं का क्रमिक परिवर्तन.....
सँवर रही हो जैसे दुल्हन....