Friday, 19 February 2016

प्रश्न - क्या लिखूँ?

सोचता हूँ कि आज मैं क्या लिखूँ?

रास्तों के धूल लिखूँ या पत्थरों के फूल लिखूँ,
जिन्दगी के प्रश्न लिखूँ या जिन्दगी को जवाब लिखूँ,
नग्मा ए नज्म लिखूँ या कुरान ए आयत लिखूँ,
तुमसे शिकवा लिखूँ या तुम्हारी शिकायत लिखूँ,
लिखने को कुछ नया आज मिल रहा नही!

सोचता हूँ कि आज मैं क्या लिखूँ?

रात के ख्वाब लिखूँ या दिन के गुलाब लिखूँ,
पत्तियों की सरसराहट लिखूँ या आपकी घबराहट लिखूँ,
चांदनी रात लिखूँ या स्याह अंधेरी रात लिखूँ,
अपने जज्बात लिखूँ या आपके ख्वाब लिखूँ,
लिखने को कुछ नया आज मिल रहा नही!

सोचता हूँ कि आज क्या लिखूँ?

बाग के फूल लिखूँ या गूलाब के कांटें लिखूँ,
पंछियों की चहचहाहट लिखूँ या पाँव की आहट लिखूँ,
सूखते पत्तों पे लिखूँ या खिलते गुलाब पे लिखूँ,
आपकी याद लिखूँ या आपका भूलना लिखूँ,
लिखने को कुछ नया आज मिल रहा नही!

सोचता हूँ कि आज क्या लिखूँ?

मदहोश मन

ये दिलकश मदहोशियों के पल,
दायरों में दिल के मची है आज हलचल
सुरमई साँझ खिल रही आज मचल।

मदहोश हो रहा आज मेरा ये मन,
कौन से बंधन मे बंध रहा आज ये मन,
खींच रहा किस डोर से ये बंधन।

मदहोशियों की चादर फैली यहाँ,
बदले बदले से आज मौसमों की दास्ताँ,
महकी सी हर दिशा आज है यहाँ।

अन्जाना सा ये दिलकश बंधन,
अन्जान राहों पे जाने किधर चला ये मन,
मदहोश धड़क रहा आज ये मन।

आँधियाँ

आँधियाँ ये कैसी चली,
उड़ा ले गया जो आँशियाँ,
टूटकर चमन की शाख से,
डालियाँ बिखरी हुई यहाँ।

पेड़ पत्ते विहीन हुए,
उजड़ा पत्तों का आशियाँ,
बिखरकर मन की बस्ती से,
मानव निस्तेज पड़ा यहाँ।

रोक लो उन आँधियोे को,
नफरतें फैलाती जो यहाँ,
उजाड़कर इन बस्तियों को,
तोड़ते है फिर बागवाँ।

ये बेचारा दिल

ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर जिन्दगी की राहों मे न आपसे मिला होता,
फलसफे चुन चुन कर रुशवाईयों के,
कागजों पे न आज लिख रहा होता।

ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर सादगी पे आपकी ये न मर मिटा होता,
समुन्दर की बार बार उठती लहरों से,
पता आपका न आज पूछ रहा होता।

ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर रूह की गहराईयों में न आपको बिठाया होता,
चूर चूर हो चुके इस दिल के हर टुकड़े से,
नाम आपका ही न आ रहा होता।

जननी जन्मभूमि भारत

जननी जन्मभूमि हूँ मैं,
आहत हूँ थोड़ी सी, थोड़ी विचलित हूँ मैं,
सदियों से कुठाराघात कई दुश्मनों के सह चुकी हूँ मैं,
टूटी नहीं अभी तक संघर्षरत हूँ मैं।

भारत की माता हूँ मैं!
जानती हूँ सदियों से हमपे जुल्म कई होते रहे,
गोलियों से मेरे वीर सपूतों के हृदय छलनी होते रहे,
पर आहूति देकर ये, रक्षा मेरी करते रहे।

कर्मवीरों की धरती हूँ मैं!
अभिमान हूँ कोटि कोटि हृदयस्थ जलते दीप की,
गौरव हूँ मैं जन जन के संगीत की,
बिखरूंगी लय नई बन, विश्वविजय गीत की।

जननी जन्मभूमि हूँ मैं, भारत माता हूँ मैं।

Thursday, 18 February 2016

तिरंगा शिरमौर भारत की शान

तिरंगे की शान मे बर्दाश्त न होगी गुस्ताखी हमें,
शिरमौर भारत की मान-सम्मान-गौरव सुरक्षा,
 लेनी अब अपनी हाथों में हमें!

वो दुश्मन गद्दार है जो कहता,
भारत मेरा देश नहीं,
मैं कहता सरजमीं-ए-भारत,
स्वाभिमान है मेरा,कोई खेल नहीं!

गद्दार हैं वो! जिनके दिल,
सरजमीं-ए-हिंदुस्तान में रहते नहीं,
युगों- युगों से जयचन्द जैसे,
गद्दारों की इस देश में चली नही।

शिरोधार्य शिरमौर देश का स्वाभिमान हमें,
अरमानों की बलि देकर,
इसकी रक्षा करनी होगी हमें, 
तिरंगे की शान मे बर्दाश्त न होगी गुस्ताखी हमें,
देश द्रोही अफजल जैसे गद्दारों के,
सर कलम करनी होगी हमें।

शिरमौर भारत की मान-सम्मान-गौरव सुरक्षा,
 अब लेनी अपनी हाथों में हमें!

सपनों के भारत को लगी नजर

मेरे सपनों के भारत को लग गई किसकी नजर?

सोंच हो चुकी है दूषित आज सत्तालोलुपों की,
सत्ता के भूखे उस महा दानव की,
साधते स्वार्थ अपना रोपकर वृक्ष वैमनस्य की।

महादानव हैं वो पर दाँत नही दिखते उसके,
खतरनाक विषधर विष भरे सोंच उनके,
दूषित कर देते ये सोंचविचार निरीह भोले मानस के।

चंद पैसों की खातिर बिक जाते यहाँ ईमान,
देश समाज धर्म का फिर कहाँ ध्यान,
आम जन मरे या जले, बढ़ता रहे इनका सम्मान।

सत्ता लोलुपता इनकी देशभक्ति से ऊपर,
देश की बदहाली, दुर्दशा से ये बेखबर,
खुशहाल आवो हवा को लग गई इनकी बुरी नजर।

मेरे सपनों के भारत को लग गई किसकी नजर?