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Sunday 29 May 2016

मधुमय मुक्ताकाश

जीवन को मधुमय मधुमास बन जाने दो....

करुणा के भावमय मुक्ताकाश पर,
स्नेह का असीम विस्तार हो जाने दो,
जहाँ मुक्त हो हृदय के कंपन,
करुण प्रेम का प्रगाढ़ आभाष हो जाने दो,

जीवन को मधुमय मधुमास बन जाने दो....

कल्पना के विचरते मुक्ताकाश पर,
मानस पटल के विहग को उड़ जाने दो,
जहाँ विचरती हों कल्पनाशीलता,
मन की आशाओं को पंख लग जाने दो,

जीवन को मधुमय मधुमास बन जाने दो....

अभिलाषा के अनंत मुक्ताकाश पर,
विपुल आकांक्षाओं को प्रबल हो जाने दो,
जहाँ आसक्ति अनुराग हो मन में,
अंतःकरण के प्रसून प्रष्फुटित हो जाने दो,

जीवन को मधुमय मधुमास बन जाने दो....

Saturday 21 May 2016

अकथ्य प्रेम तुम

अकथ्य ही रहे तुम इस मूक़ प्रेमी हृदय की जिज्ञासा में!

ओ मेरी हृदय के अकथ्य चिर प्रेम-अभिलाषा,
चिर प्यास तुम मेरे हृदय की,
उन अभिलाषित बुंदों की सदा हो तुम ही,
रहे अकथ्य से तुम मुझ में ही कहीं,
हृदय अभिलाषी किंचित ये मूक सदा ही!

ओ मेरी हृदय के अप्रकट प्रेमी हम-सानिध्या,
चिर प्रेमी तुम मेरे हृदय की,
हम-सानिध्य रहे सदा तुम यादों में मेरी,
अप्रकट सी कहीं तुम मुझ में ही,
हृदय आकुल किचिंत ये मूक़ सदा ही!

ओ मेरी हृदय के अकथ्य चिर-प्यासी उत्कंठा,
चिर उत्कंठा तुम मेरे हृदय की,
प्यासी उत्कंठाओं की सरिता तुम में ही,
अनबुझ प्यास सी तुम मुझ में ही,
हृदय प्यासा किंचित ये मूक सदा ही!

अकथ्य ही रहे सदा तुम इस मूक़ हृदय की जिज्ञासा में!

Thursday 31 March 2016

एक मधुर कहानी का अन्त

क्या मधुर कहानी का अन्त ऐसा हीे होता है जग में?

नजदीकियाँ हद से भी ज्यादा दोनों में,
बेपनाह विश्वास पलता धा उनके हृदय में,
सीमा मर्यादाओं की लांघी थी दोनों नें,
टीस विरह की रह रह कर उठते थे मन में,
फिर भी बिछड़े-बिछड़े से थे दोनों ही जीवन में!

क्या ऐसी कहानी का अन्त ऐसा हीे होना है जग में?

आतुरता मिलने की पलती दोनो के मन में,
सपनों की नगरी ही पलती थी मन में,
विवश ज्वाला सी उठती थी रह रह कर तन में,
सुख मिलन के क्षणिक दोनों ही के जीवन में,
विरह की अगन धू-धू कर जलती फिर भी मन में!

क्या प्रेम कहानी का अन्त ऐसा हीे होना है जग में?

क्युँ मिल नहीं पाते दो प्रेमी हृदय इस जग में?
रंग प्रेम के क्यों सूखे हैं उनके जीवन में?
विरानियाँ मन के क्या लाएंगे कलरव खुशियों के?
सूखे पेड़ क्या फल पाएंगे जग के आँगन में?
गर्म हवाएँ लू सी चलती अब उनके मृदुल सीने में!

क्या प्रेमी हृदय ऐसे ही जलते हैं जग के प्रांगण में?

विष के घूँट पी रहे अब दोनो ही जीवन के,
चुभन शूल सी सहते पल पल विरह के,
कलकल सरिता से नीर बहते उनकी नैनों से,
कंपन भूचाल सी रह रह कर उठते हृदय में,
पलकें पथराईं सी आँचल भीगे भीगे अब जीवन में!

क्या मधुर कहानी का अन्त ऐसा हीे होता है जीवन में?

Tuesday 29 March 2016

मेरी मधुशाला

सम्मुख प्रेम का मधुमय प्याला,
अंजान विमुख दिग्भ्रमित आज पीने वाला,
मधुमय मधुमित हृदय प्रेम की हाला,
सुनसान पड़ी क्युँ जीवन की तेरी मधुशाला।

हाला तो वो आँखो से पी है जो,
खाक पिएंगे वो जो पीने जाते मधुशाला,
घट घट रमती हाला की मधु प्याला,
चतुर वही जो पी लेते हृदय प्रेम की हाला।

मेरी मधुशाला तो बस सपनों की,
प्याले अनगिनत जहाँ मिलते खुशियों की,
धड़कते खुशियों से जहाँ टूटे हृदय भी,
कुछ ऐसी हाला घूँट-घूृँट पी लेता मैं मतवाला।

भीड़ लगी भारी मेरी मधुशाला मे,
बिक रही प्रीत की हाला गम के बदले में,
प्रेम ही प्रेम रम रहा हर प्रेमी के हृदय में,
टूटे हैं प्याले पर जुड़े हैं मन मेरी मधुशाला में!

विषपान से बेहतर मदिरा की प्याला,
विष घोलते जीवन में ये सियासत वाला,
जीवन कलुषित इस विष ने कर डाला,
विष जीवन के मिट जाए जो पीले मेरी हाला।

भूल चुके जो जन राह जीने की,
मेरी मधुशाला मे पी ले प्याला जीवन की,
चढ़ जाता जब स्नेह प्रेम की हाला,
जीवन पूरी की पूरी लगती फिर मधुशाला।

Monday 28 March 2016

प्रेमी हृदय की मौत

धड़कता था,
वो प्रेमी हृदय,
कभी इक सादगी पर,
उस सादगी के पीछे,
छुपा मगर,
इक चेहरा अलग,
आकण्ठ डूबी हुई,
वासना में उनकी नियत,
टूटकर बिखरा पड़ा,
अब यहीं वो कोमल हृदय।

मोल मन की,
भाव का,
कुछ भी नही उनके लिए,
दंश दिलों की,
सरहदों पर,
वो सदा देते रहे,
हृदय के,
आत्मीय संबंध,
खिलौने खेल के हुए,
वासना के आगे उनकी,
सर प्रीत के हैं झुके हुए।

घुट रहा दम,
उस हृदय का,
जीते जी वो मर रहा,
वो मरे या जले,
उसकी किसी को फिक्र क्या,
अन्त ऐसा ही हुआ,
जब प्रीत किसी हृदय ने किया,
वासना के सम्मुख,
प्रीत सदा नतमस्तक हुआ।

Sunday 20 March 2016

दो पुतलियाँ आँखों की

आँखों की ये दो पुतलियाँ,
परिभाषित करती हैं प्रेम को जैसे,
जीवन भर मिल पाते नही एक दूसरे से,
विस्मयकारी हैं तारतम्य इन दोनों के।

एक के बिन रहती अधूरी दूसरी,
नैन सुन्दर से कहलाते दोनों मिलकर ही,
पूर्णता नजरों की दो पुतलियाँ मिल कर ही 
आभास गहराई का दो पुतलियों से ही।

चलते है एक स्वर में दोनो ही,
साथ साथ खुलते ये बंद होते साथ ही,
जीवन के सुख-दुख की घड़ियाँ गिनते साथ ही,
नीर छलकते दो पुतलियो में साथ ही।

अलग-अलग पर वो अंजान नही,
दूरी दोनों में पर नजरों में मतभेद नहीं,
शिकवा शिकन शिकायत इनकी लबों पर नहीं,
एहसास परस्पर प्रेम के ये मरते नही।

Saturday 13 February 2016

आँखों का भरम


जानता हूँ तुमको जनमों से, तुम जानो या न जानो।

कई जन्मो पहले तुम मिले थे मुझको,
हम बिछड़े, फिर मिले हम, दुनिया से गुजरे, 
युग बीते, जन्म बदले, शक्ल बदले,
लगती ये बात पर आजकल की ही मुझको।

जानता हूँ कई जनमों से तुम्हे, तुम मानो या न मानो।

डोर कैसी जो खीचती तेरी ओर मुझको,
बिछड़े जन्मों पहले, फिर मिले हो तुम मुझको
आँखों में ये भरम कैसी, जो शक्ल बदले?
जन्मों-जन्मो से मिलते रहे तुम युंही मुझको।

जनमों जनमों का ये बंधन, तुम मानो या न मानो।

संध्या प्रेम

संध्या दिन की बाहों में अटकी सी,
जाने की विवश रुकने की चिन्ता में भटकी सी,
मंद पवन रोकती राहें लट सहलाती संध्या की।

संध्या की सासें प्रीत मे अटकी सी,
धीमी धवल मद्धिम रौशन राहों मे भटकी सी,
चंचला रात्रि संध्या प्रेम में डूबी मदमाई सी।

संध्या स्वप्न सम सुंदर चटकी सी,
अब डूब रही रात की आगोश में मतवाली सी,
रूप-मधु रात्रि की संध्याप्रीत मे निखरी सी।

Saturday 6 February 2016

एे मेरे हमनवाँ

सजती रहेंगी दिल की महफिलें तुमसे ही हमनवाँ!

फलक से उतर के तू आजा जमीं पर,
एे रख दे कदम तू दिल की जमीं पर,
बिखर जाएंगे राहों पे फूलों के बदन,
चाँदनी से निखर जाएगा सारा चमन।

सपनों की फलक सजती रहेंगी तुमसे ही हमनवाँ!

निगाहों में आपकी हैं सपनों का जहाँ,
उन सपनों को मैं सजाऊंगा अब यहाँ,
सँवर जाएगी किस्मत कुछ हमारी भी
फलक से तुझको लाऊंगा एे हमनवाँ।

तू उतर के आ जमीं पर एे मेरे हसीं हमनवाँ!

Wednesday 3 February 2016

काया प्रेम

क्या तू सिर्फ उस काया से ही प्रेम करता?

बस निज शरीर त्यागा है उसने,
साथ अब भी तेरे मन मे वो, 
प्राणों की सासों की हर लय मे वों, 
यादों की हर उस क्षण में वो।

फिर अश्रु की अनवरत धार क्युँ?

असंख्य क्षण उस काया ने संग बांटे,
पल जितने भी झोली मे थे उसके,
हर पल साथ उसने तेरे काटे,
सांसों की लय तेरी ही दामन में छूटे।

फिर कामना तू अब क्या करता?

क्या तू सिर्फ उस काया से ही प्रेम करता?

Wednesday 20 January 2016

हसीन लम्हात

उन हसीन लम्हातों की खामोशियों मे,
आहट की कल्पना भी प्यारी है तुम्हारी,
रंग कई बिखर जाते हैं आँखों के सामने
डूब जाता है सारा आलंम गुजरिशों में।

दूर एक साया दिखता बस तुम्हारी तरह,
शायद सुन लिया है गीत मेरा तुमने भी,
पास आते हो तुम किसी मंजर की तरह,
गूंज उठते हैं संगीत के स्वर ख्यालों में।

याद बनकर जब कभी छाते हो दिल पर,
शहनाईयाँ सी बज उठती हैं विरानियों मे,
सैंकड़ों फूल खिल उठते मधुरस बरसाते,
झूम उठता हृदय का भँवर मधुर पान से। 

जोगन और बटोही

युगों से द्वार खड़ी वाट जोहती वटोही का वो!

शायद भूल चुका वादा अपना चितचोर वो वटोही,
मुड़कर वापस अबतक वो क्युँ ना आया?
यही सोचती वो जोगन वाट जोहती!

वो निष्ठुर हृदय उसको तनिक भी दया न आई,
मैं अबला उसने मेरी ही क्युँ चित चुराई?
चित चुराने ही आया था वो सोचती!

फिर सोचती! होगी कोई मजबूरी उसकी भी,
चितचोर नही हो सकता मेरा परदेशी!
समझाती मन को फिर राह देखती!

मेरे विश्वास का संबल बसता हिय उस परदेशी के,
बल मेरे संबल का क्या इतना दुर्बल?
वाट जोहती जोगन रहती सोचती!

भाग्य रेखा मेरे ही हाथों की है शायद कमजोर,
कर नही पाती मदद जो ये मेरे प्रीतम की,
बार-बार अपने मन को समझाती!

अब तो बाल भी सफेद हो गए आँखें कमजोर,
क्या मेरा वटोही अब देखेगा मेरी ओर?
झुर्रियों को देख अपनी सिहर जाती!

युगों तक बस वाट जोहती रही उस वटोही का वो!

जोगन की विश्वास का संबल दे गया अथाह खुशी,
वक्त की धूंध से वापस लौट आया वो परदेशी!
अश्रुपूर्ण आखें एकटक रह गई खुली सी।

हिय लगाया उस जोगन को काँपता वो परदेशी,
व्यथा जीवन सारी आँखों से उसने कह दी,
निष्ठुर नहीं किश्मत का मारा था वो वटोही!

खिल उठी विरहन सार्थक उसकी तपस्याा हुई!
युगों युगों तक फिर वो जोगन, उस वटोही की हो गई।

अब सोचती! मेरा प्रीतम चितचोर था, पर निष्ठुर नही!


Monday 18 January 2016

टूटा हृदय

अश्रुओं की अविरल मुक्त धार से अपनी,
अब क्युँ रोक रही हो राह उसकी?
मंडराते बादलों की तरह टूटा है हृदय उसका,
अश्रुबूँद क्या भर सकेंगे घाव उसकी?

टूटा हृदय बादलों सा नभ में व्याकुल मंडराता,
गर्जना कर व्यथा अपनी सबको सुनाता,
चीर जाती पीड़ा उसकी हृदय व्योम के भी,
निष्ठुर तुझे न आयी क्या दया जरा भी?

अब व्यर्थ किसलिए तुम पश्चाताप करती,
आँसुओं के सैलाब क्युँ बरबाद करती,
प्यास हृदय की बुझ चुकी खुद की आँसुओं से ही,
शेष बरस रहे अब झमाझम बारिश की बुंदों सी।

Thursday 14 January 2016

तेरी यादों का सफर

धुंधली सी एक झलक पाने को,
अक्सर खो जाता हूँ 
फिर तेरी यादों में....,
छम से तुम आ जाती हो...
अपलक झलक दिखा के,
क्षण में गुम हो जाती हो,
फिर कोहरे में कहीं....

उन चँद पलों मे,
खुद को बिखेर देता हूँ मैं,
अपने आपको....
पूरी तरह समेट भी नही पाता,
तुम वापस चली जाती हो,
अगले ही पल....

जाने किन कोहरे में गुम,
खोए हम गुमसुम,
समय के नस्तर चलते जाते हैं,
दिलों पर नासूर बन...

तुम्हारी एक झलक पाने को,
वापस तुम्हे बुलाने को...
फिर तेरी यादों में खो जाता हूँ....,
अक्सर तुम आ जाती हो यादो में फिर...

तुम झूठी दिलाशा मत दो


तुम मुझको झूठी दिलासा मत दो!

जाने तुझमें, तेरी गहरी आँखों में क्या देखता हूँ?
लहरों के आँचल से कुछ चुनता हूँ,
दहकती रेत में फसलें बोता हूँ,
काली रातों में उजली रौशनी ढूंढता हूँ,
तेरी बातों का हर पल आसरा ढूंढ़ता हूँ,
जो बातें असंभव हैं, वो ख्वाब बुनता हूँ,
दिवा स्वप्न सी आभा में खुद को खोता हूँ।

तुम मुझको झूठी दिलासा मत दो!

जाने तुझमें, तेरी मीठी बातों में क्या देखता हूँ?
रेत के महलों में आश्रय ढूंढ़ता हूँ,
मृग मरीचिका से गहरे रंग मांगता हूँ,
तास के घरों मे बूंदो से बचना चाहता हूँ,
निशा रात्रि प्रहर में पक्षी के सुर चाहता हूँ,
अंधेरी राहों मे उज्जवल प्रश्रय चाहता हूँ,
मीठे स्वर के मधुकंपन में खुद को खोता हूँ।

तुम मुझको झूठी दिलासा मत दो!

Wednesday 13 January 2016

और नहीं कुछ तुमसे चाह!

कुछ हल्का कर दो जीवन की व्यथा-भार,
तुम दे दो सुख के क्षण जीवन आभार,
प्रिय, बस और नही कुछ तुमसे चाह!

व्यथा-भार जीवन की संभलती नही अकेले,
दुःख के क्षण जीवन के चिरन्तन से खेले,
तुम दे दो साथ, और नही कुछ तुमसे चाह!

अर्थ जीवन का अकेले समझ नही कुछ आता,
राह जीवन की लम्बी व्यर्थ मुझे है लगता,
तुम हाथ थाम लो, और नही कुछ तुमसे चाह!

Tuesday 12 January 2016

दिल ढूंढता वो अफसाना

वो इक अफसाना,
सदियों से हृदय मे अंकित,
दिल की वादियों मे फूलों सा लहराता,
तेरी स्पर्श का मीठा अहसास देता,
सुकून मिल जाता।

लगता है जैसे,
कल की ही बात है अभी,
यादों की दृष्टिपटल पर उभर आता,
पलकें मूँद फिर मन को सहलाता,
सुकून मिल जाता।

दिल फिर ढूंढता,
वही हसरतों के खूबसूरत पल,
बेपरवाह हँसी, मधुमय बातों के सिलसिले,
मन की गुफाओं मे कैद वो अफसाना,
दिल को बेचैन कर जाता।

वो इक खूबसूरत अफसाना,
सदियों से दिल की वादियों मे लहराता।

Monday 11 January 2016

ठहरा हुआ पल

पल जो इक ठहर गया,
सिलसिले थम से गए,
मिलने जुलने और बातों के,
रास्ते गुम हुए कोहरो की धुंध में,
तुफान थम गए हसरतों के,
वक्त ठहर सा गया है यहीं,
उस पल की तानाइयों मे।

यादों के धुंधले से कारवाँ,
नजरों से गुजरती झीनी परदों सी,
उस पल की भीनी खुशबु,
अब भी फैल जाती है सासों मे,
जम सी जाती हंदयस्पंदन,
गति धड़कनों की थमी,
वक्त ठहर सा गया है कहीं,
उन पल की अमराइयों मे।

मंद बयार चल पडे थे उस पल,
बहक से गए जो तुमको छुकर,
अब तक बह रही ख्यालों में,
सप्तरंग घुले दिल की फजाओं में,
जेहन में बिखर गहरा गए है वो,
अटखेलियाँ उन लम्हों की
महफूज है दिल के कोने मे,
संगमरमर के मूरत की तरह,
वक्त ठहर सा गया है,
उस पल की अंगराइयों मे।

Sunday 10 January 2016

इक नया आसमा

इक नया आसमाँ नित इक नई मंजिल,
पाना चाहते बेखबर ये दो दिल बार-बार,
अनोखा इक नया गीत, मधुरतम इक नई संगीत,
धड़कनों के धड़कने की अनोखी इक नई रीत,
सुनाना चाहते दुनिया को ये दो दिल हर बार।

जैसे लहरें समुन्दर की झूम कर आती साहिल पर,
टूटकर बिखर जाती दामन में इसके बार-बार,
छेड़ जाती धुन एक नई प्यार की,
रूप अनोखा दे, करती फिर नया इक वादा,
लौट आऊंगा मचल फिर करने प्यार हर बार।

जैसे सूरज रोज आता बादलों के पीछे से,
रंग वसुधा को दे करता इजहारे प्यार बार-बार,
जलाता तपिश से उसे रंग मे अपनी रंग लेता,
लौट जाता फिर कर इक नया वादा,
रोज आऊंगा देने तुझे इक नई तपिश हर बार।

जैसे हवाएँ रोज आती पेड़ों के दामन में,
पत्तियों को छू करती प्यार का इजहार बार-बार,
झकझोर जाती शाखों को सरसराहट से,
गुजरती कोर से करती रोज इक नया वादा,
सँवर-निखर तू आऊँगा छेड़ने तुझको हर बार।

प्यार का इक नया आसमाँ पाना चाहते ये दो दिल।

Saturday 9 January 2016

ममता

ममता माता के कोख से जन्मी,
प्रसव पीड़ा संग उर लहलहाई,
नवजीवन के आहट संग उपजी,
वात्सल्य के आँसू बन बिखरी।

भाव दुलार मधुर वात्सल्य ,
मिलते ममता की गाँव में,
लालन पालन लाड़ प्यार,
सब ममता की छाँव में।

फलिभूत होता जीवन कण,
सुरभित ममता के अाँचल संग,
ममता वसुधा के कण-कण,
पुचकारती जनजन के मन।

सुख कल्पना नहीं ममता बिन,
राग विहाग नही ममता बिन,
नित सू्र्यालाप नही ममता बिन,
सृष्टि अधूरी ममता बिन।