छाया क्षणिक सी,
वो क्या दे पाएगी गहरी छाँव?
कोरा भ्रम मन का,
कि पा जाऊँ क्षण भर,
उस अल्प छाया में विश्राम,
भ्रमित मन भँवरा सा,
आ पहुँचा है किस गाँव?
छाया खुद तपती सी,
वो क्या दे पाएगी गहरी छाँव?
छाया वो प्यासी सी,
तप्त किरणों में कुचली सी,
झमाझम बूंदों की उसको चाह,
बरसूँ मैं भींगा बादल सा,
ले आऊँ संग उसे अपने गाँव!
छाया लहराई सी,
अब हसती बनकर गहरी छाँव?
वो क्या दे पाएगी गहरी छाँव?
कोरा भ्रम मन का,
कि पा जाऊँ क्षण भर,
उस अल्प छाया में विश्राम,
भ्रमित मन भँवरा सा,
आ पहुँचा है किस गाँव?
छाया खुद तपती सी,
वो क्या दे पाएगी गहरी छाँव?
छाया वो प्यासी सी,
तप्त किरणों में कुचली सी,
झमाझम बूंदों की उसको चाह,
बरसूँ मैं भींगा बादल सा,
ले आऊँ संग उसे अपने गाँव!
छाया लहराई सी,
अब हसती बनकर गहरी छाँव?