चल, होली है, पागल!
यूँ छेड़ न तू, तन्हा सा गजल.....नेह लिए प्राणों मे, दर्द लिए तानों में,
सहरा में, या विरानों में,
रंग लिए पैमानों में, फैला ले जरा आँचल,
चल, होली है, पागल!
आहट पर, हल्की सी घबराहट पर,
मन की, तरुणाहट पर,
मौसम की सिलवट पर, शमाँ जरा बदल,
चल, होली है, पागल!
यूँ छेड़ न तू, तन्हा सा गजल.....
विह्वल गीत लिए, अधूरा प्रीत लिए,
तन्हा सा, संगीत लिए,
विरह के रीत लिए, क्यूँ आँखें हैं सजल,
चल, होली है, पागल!
यूँ छेड़ न तू, तन्हा सा गजल.....
बरस जरा, यूँ ही मन को भरमाता,
बादल सा, लहराता,
इठलाता खुद पर, बस हो जा तू चंचल,
चल, होली है, पागल!
यूँ छेड़ न तू, तन्हा सा गजल.....
चल, होली है, पागल!
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