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Sunday 17 April 2016

मेरे जज्बात

मैं बार-बार सोचता हूँ! मैं क्युँ न बन पाया उस हृदय और मन सा?

विश्वास की डोर हो या अधिकार या कहें कुछ और,
साथ समय के बदल जाते है यहाँ सब कुछ,
रिश्ते भावनाओं के हों, या हो बेनाम, या कुछ और!

एहसास बदल जाते है, कभी अन्जाने से रिश्तों में,
कभी रिश्ते बदल लेते हैं, जज्बातों के एहसास,
हृदय नही वो पत्थर हैं, बदल लेते है जो जज्बात!

कई बार मन सोचता है! एक ईन्सान के हैं कितने रूप ?

कभी भ्रम पैदा करता वो गहरे एहसासों का,
अपनेपन की बदलते मुखौटों में कभी वो मुस्काता,
जज्बातों को सहलाता अपनी मीठी बोली में तोलकर।

रिश्तों को परिभाषित करता अपनी जरूरतों में हर पल,
जज्बातों की गहराई से खेलता सँवारता अपना आनेवाला कल,
बदलते रिश्तों की इस दुनियाँ में, विश्वास ढ़ूढ़ता अपना ठौर।

वो हृदय! स्वरूप कैसा होगा उस हृदय की कोटरी का?
विश्वास की अधूरी धुन पर जो जानता है बखूबी धड़कना,
उसका मन? कैसा स्वरूप होगा उस इन्सान के मन का?

मैं बार-बार सोचता हूँ! मैं क्युँ न बन पाया उस हृदय और मन सा?

मिथ्या अहंकार

बिखरे पड़े हैं कण शिलाओं के उधर एकान्त में,
कभी रहते थे शीष पर जो इन शिलाओं के
वक्त की छेनी चली कुछ ऐसी उन पर,
टूट टूटकर बिखरे हैं ये, एकान्त में अब भूमि पर ।

टूट जाती हैं ये कठोर शिलाएँ भी घिस-घिसकर,
हवाओं के मंद झौकों में पिस-पिसकर,
पिघल जाती हैं ये चट्टान भी रच-रचकर,
बहती पानी के संग, नर्म आगोश मे रिस-रिसकर।

शिलाओं के ये कण, इनकी अहंकार के हैं टुकड़े,
वक्त की कदमों में अब आकर ये हैं बिखरे,
वक्त सदा ही किसी का, एक सा कब तक रहता,
सहृदय विनम्र भाव ने ही, दिल वक्त का भी है जीता।

ये अहम भाव तो, मिथ्या भ्रम होते हैं मन के,
टूट जातेे हैं अहंकार यहाँ हम इन्सानों के,
मृदुलता मन की, सर्वदा ही भारी अहम पर,
कोमलता हृदय की, राज करती सर्वदा इस जग पर।

Friday 15 April 2016

तन्हाई के ख्याल

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

ख्यालों के निर्झर सरिता मे वो बहती,
कलकल छलछल पलपल हरपल वो करती,
जाने किन शिखरों से चलकर वो आती,
झिलमिल सांझ ढ़ले किस सागर में मिल जाती,
ख्यालों के विरान महल में बस मैं और मेरी तन्हाई।

टकराती रह रह कर हृदय के इस तट पर,
शिलाओं सा टूटता रहता मैं तिल तिल घिस-घिस कर,
यादों के सैकत बिछ जाते हृदय के तल पर,
गहरा सा मन मेरा शिलाचूर्ण से फिर जाता भर,
कभी रुक जाते वो झील सी ख्यालों में बह बहकर।

खिल उठती कमल सी वो उस ठहरी झील मे,
समेटती अपनी चंचलता पलभर को अपने मन में,
बिखेरती वो सुंदर सी आभा उस उपवन में,
सपनों का वो घन सदियों से मेरे मन प्रांगण में,
इक ख्याल बन कर उभरता हर पल मेरी तन्हाई में।

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

Monday 4 April 2016

असंख्य फूल

काश! मन की वादियों में फूल खिलते हजार!

हृदय की धड़कनें कह रहीं हैं बार-बार,
कहीं साहिलों पर खड़ा मन है कोई बेकरार,
गुजर रहें वो फासलों से करते हुए इंतजार।

काश! सुन ले कोई उस हृदय की पुकार,
साहिलों के कोर पे टकरा रही विशाल ज्वार,
बावरा वो मन हुआ धुएँ सा उठ रहा गुबार।

बार-बार वो हृदय कलप कर रहा पुकार,
स्पंदनें धड़कनों की कुहक रही होकर अधीर,
काश! इन वादियों में आ जाती वही बहार।

मन और हृदय दोनों साथ हो चले हैं अब,
अधीर मन पुलक हृदय को संभालता है अब,
उस फलक पे कहीं मिल जाएगा वो ही रब।

मन की वादियों में असंख्य फूल खिल जाएंगे तब!

Wednesday 30 March 2016

बेजुबाँ हृदय

मूक हृदय की पीड़ा कभी कह नही पाए वो लब!

सुलगती रही आग सी हृदय के अंतस्थ,
तड़पती रही आस वो हृदय के अंतस्थ,
झुलसती रही उस ताप से हृदय के अंतस्थ,
दबी रही बात वो हृदय के अंतस्थ!

बेजुबाँ हृदय की भाषा कब समझ सके हैं सब!

धड़कनों की जुबाँ कहता रहा मूक हृदय सदा,
भाव धड़कनों की लब तक न वो ला सका,
पीड़ा उस हृदय की नैनों ने लेकिन सुन लिया,
बह चली धार नीर की उन नैनों से तब!

मूक हृदय की पीड़ा कभी कह नही पाए वो लब!

Tuesday 29 March 2016

मेरी मधुशाला

सम्मुख प्रेम का मधुमय प्याला,
अंजान विमुख दिग्भ्रमित आज पीने वाला,
मधुमय मधुमित हृदय प्रेम की हाला,
सुनसान पड़ी क्युँ जीवन की तेरी मधुशाला।

हाला तो वो आँखो से पी है जो,
खाक पिएंगे वो जो पीने जाते मधुशाला,
घट घट रमती हाला की मधु प्याला,
चतुर वही जो पी लेते हृदय प्रेम की हाला।

मेरी मधुशाला तो बस सपनों की,
प्याले अनगिनत जहाँ मिलते खुशियों की,
धड़कते खुशियों से जहाँ टूटे हृदय भी,
कुछ ऐसी हाला घूँट-घूृँट पी लेता मैं मतवाला।

भीड़ लगी भारी मेरी मधुशाला मे,
बिक रही प्रीत की हाला गम के बदले में,
प्रेम ही प्रेम रम रहा हर प्रेमी के हृदय में,
टूटे हैं प्याले पर जुड़े हैं मन मेरी मधुशाला में!

विषपान से बेहतर मदिरा की प्याला,
विष घोलते जीवन में ये सियासत वाला,
जीवन कलुषित इस विष ने कर डाला,
विष जीवन के मिट जाए जो पीले मेरी हाला।

भूल चुके जो जन राह जीने की,
मेरी मधुशाला मे पी ले प्याला जीवन की,
चढ़ जाता जब स्नेह प्रेम की हाला,
जीवन पूरी की पूरी लगती फिर मधुशाला।

Monday 28 March 2016

प्रेमी हृदय की मौत

धड़कता था,
वो प्रेमी हृदय,
कभी इक सादगी पर,
उस सादगी के पीछे,
छुपा मगर,
इक चेहरा अलग,
आकण्ठ डूबी हुई,
वासना में उनकी नियत,
टूटकर बिखरा पड़ा,
अब यहीं वो कोमल हृदय।

मोल मन की,
भाव का,
कुछ भी नही उनके लिए,
दंश दिलों की,
सरहदों पर,
वो सदा देते रहे,
हृदय के,
आत्मीय संबंध,
खिलौने खेल के हुए,
वासना के आगे उनकी,
सर प्रीत के हैं झुके हुए।

घुट रहा दम,
उस हृदय का,
जीते जी वो मर रहा,
वो मरे या जले,
उसकी किसी को फिक्र क्या,
अन्त ऐसा ही हुआ,
जब प्रीत किसी हृदय ने किया,
वासना के सम्मुख,
प्रीत सदा नतमस्तक हुआ।

Saturday 26 March 2016

तुम दीप जलाने ना आई

तुम दीप जलाने ना आई, प्राणों का आधार ना मिल पाया!
हृदय अरकंचन के पत्तों सा, जज्बात बूँदों सा बह आया!

प्रज्जवलित सदियों से एक दीप ह्रदय में,
जलता बुझ-बुझ कर साँसों की लौ मेंं,
नीर हृदय के लेकर जल उठता धू-धू कर मन में,
सूखे हैं अब वो नीर बुझ रहा दीप इस हिय में ।

तूम आ जाते जल उठता असंख्य दीप जीवन में,
तुम दीप जलाने ना आई, प्राणों का आधार ना मिल पाया।

निर्झर नीर जज्बातों का बह रहा चिर निरंतर,
रुकता है ये कब अरकंचन के पत्तों पर,
अधूरी प्यास हृदय की प्यासी सागर के इस तट पर,
आकुल प्राणों के कण-कण किसकी आहट पर।

तुम आ जाते जल उठता दीप हृदय के इस तट पर,
तुम दीप जलाने ना आई, प्राणों का आधार ना मिल पाया।

हृदय अरकंचन के पत्तों सा, जज्बात बूँदों सा बह आया।

Friday 25 March 2016

दिया याद के तुम जला लेना

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

सुनसान सी राहों पर, साँस जब थक जाए,
पथरीली इन सड़कों पर, जब चाल लड़खड़ाए,
मृत्यु खड़ी हो सामने और चैन हृदय ना पाए,
तब साँसों के रुकने से पहले, याद मुझे तुम कर लेना।

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

दुनिया की भीड़ में, जब अपने बेगाने हो जाए,
स्वर साधती रहो तुम, गीत साधना के ना बन पाए,
घर के आईने मे तेरी शक्ल अंजानी बन जाए,
तब सूरत बदलने से पहले, याद मुझे तुम कर लेना।

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

पीर पर्वत सी सामने, साथ धीरज का छूट जाए,
निराशा के बादल हों घेरे, आशा का दामन छूट जाए,
आगे हों घनघोर अंधेरे और राह नजर ना आए,
तब निराश बिखरने से पहले, याद मुझे तुम कर लेना।

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

Monday 21 March 2016

माँ का पुत्र विछोह

रुकी हुई सांसें उसकी फिर से कब चल पड़ी पता नहीं?

जीर्ण हो चुकी थी वो जर्जर सी काया,
झुर्रियाँ की कतारें उभर आईं थी चेहरे पर,
एकटक ताकती कहीं वो पथराई सी आँखें,
संग्याहीन हो चुकी थी उसकी संवेदनाएँ,
साँसों के ज्वार अब थमने से लगे थे उसके,
जम सी रही थी रक्त धमनियों मे रुककर।

ऐसा हो भी तो क्युँ न.............!
नन्हा सा पुत्र बिछड़ चुका था गोद से उस माता की!

सहन कहाँ कर पाई विछोह अपने पुत्र की,
विछोह की पीड़ा हृदय मे जलती रही ज्वाला सी,
इंतजार में उसके बस खुली थी उसकी आँखें,
बुदबुगाते थे लब रुक-रुक कर बस नाम एक ही,
विश्वास उस हृदय में थी उसके लौट आनेे की।

ऐसा ही होता है माँ का हृदय..........!
ममत्व उस माँ की अब तक दबी थी उस आँचल ही!

ईश्ववर द्रविभूत हुए उस माता की विलाप सुनकर,
एक दिन लौट आया वही पुत्र माँ-माँ कहकर,
आँखों मे चमक वही वापस लौट आई फिर उसकी,,
नए स्वर मे फिर उभरने लगे संवेदनाओं के ज्वर,
आँचल में दबा ममत्व फूट पड़ा था अपने पुत्र पर।

रुकी हुई साँसें उसकी फिर से कब चल पड़ी पता नहीं?

Saturday 12 March 2016

जुदाई

           जुदाई के अंतहीन युगों जैसे पल,
                झकझोरते शांत हृदय को हरपल,
          फासलों के क्षण बढ़ते आजकल,
               लाचार मन आज फिर है विकल।

         खामोश सी अब जुदाई की घड़ियाँ,
               मन कर रहा अब मन से ही बतियाँ,
         नैनों में डूबती चंद यादों की लड़ियाँ,
              फासले अमिट सी दिल के दरमियाँ।

         दिन बीतते महीने साल कम होते,
                हर क्षण जीवन के पल कम होते,
         वक्त के करम कब दामन मे होते,
                किस्मत होती गर तुम मिल जाते।

Saturday 5 March 2016

खुशियों का सौदागर

मैं खुशियों का व्योपारी, कहते मुझको सौदागर।

बेचता हूँ खुशियों की लड़ियाँ,
चँद पिघलते आँसुओं के बदले में,
बेचता हूँ सुख के अनगिनत पल,
दु:ख के चंद घड़ियों के बदले में।

सौदा खुशियों की करने आया मैं सौदागर।

सौदा मेरा है बस सीधा सरल सा,
सुख के बदले अपने दुख मुझको दे दो,
मोल जोल की भारी गुंजाईश इसमें,
जितना चाहो उतनी खुशियाँ मुझसे लो।

सौगात खुशियों की लेकर आया मैं सौदागर।

खुलती दुकान मेरी चौबीसो घंटे,
सौदा सुख का तुम चाहे जब कर लो,
स्वच्छंद मुस्कान होगी कीमत मेरी,
बदले में मुस्कानों की तुम झोली ले लो।

मैं खुशियों का व्योपारी कहते हैं मुझको सौदागर।

सुख दुख तो इक दूजे के संगी,
लेकिन संग कहाँ कहीं पर ये दिखते हैं,
इक जाता है तो इक आता है,
साथ साथ दोनो इस मन में ही बसते हैं।

सौगात जीवन की लेकर आया हूँ मैं सौदागर।

मन की दीवारों को टटोलकर देखो
सुख के गुलदस्ते अभी तक वहीं टंके हैं,
हृदय के अंदर तुम झाँककर देखो,
सुख का सौदागर तो रमता तेरे ही हृदय है।

ढ़ूंढ़ों तुम अपने हृदय में वही बड़ा है सौदागर।

Friday 26 February 2016

मै रुक जाता!

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

प्रिये, तुम मेरी आस, तुम जन्मों की प्यास,
प्यास बुझाने जन्मों की तेरी पनघट ही मैं आता,
मैं राही तेरी राहों का, और कहीं मैं क्युँ जाता,
राह देखती तुम भी अगर, मैं भी तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

तुमसे ही चलती ये सांसे, तुमपर ही विश्वास,
सासें जीवन की लेने तेरी बगिया ही मैं आता,
टूटे हृदय के इस मृदंग को तेरे लिए बजाता,
गीत मेरे तुम भी सुन लेती, तो मैं तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

कह देती तुम गर, बात कभी अपने मन की,
उम्मीद लिए यही मन में, मैं तेरी राह खडृ़ा था,
दामन उम्मीद का मैंने, कहाँ कभी छोड़ा था,
यूँ ही चल पड़ा था मैं, तुमने भी कब रोका था।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

Thursday 25 February 2016

एक बार जो तुम कह देती

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

प्रिये, तुम मेरी आस, तुम जन्मों की प्यास,
बुझाने जन्मों की प्यास, तेरी पनघट ही मैं आता,
राही तेरी राहों का मैं, और कहीं क्युँ जाता,
राह देखती तुम भी अगर, मैं भी तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

तुमसे ही चलती ये सांसे, तुम पर ही विश्वास,
सासें जीवन की लेने, तेरी बगिया ही मैं आता,
टूटे हृदय का यह मृदंग, तेरे लिए बजाता,
गीत मेरे तुम भी सुन लेती, तो मैं तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

कह देती तुम गर, बात कभी अपने मन की,
उम्मीद लिए यही मन में, मैं तेरी राह खड़ा था,
यूं दामन उम्मीद का, कहाँ कभी छोड़ा था,
यूँ ही चल पड़ा था मैं, तुमने भी कब रोका था।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

Wednesday 10 February 2016

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

मैं रहता हूँ हृदय में तेरे मांग तेरी सजाता हूँ,
तुम देखती हो सपने, सिर्फ मेरे ही सपने,
जुल्फों की बिखरी लटें तेरी मैं ही सहलाता हूँ,
रोज ही गूंधता हूँ एक फूल लटों में तेरे ।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

तुम्हारी आँखों में सजाता हूँ जीवन की तस्वीरें,
गगन की छाँव से काजल ले आता हूँ,
इन्तजार में देहरी पर बैठी हो तुम मेरे ही,
तेरी आँखों में बस एक मैं ही रहता हूँ।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

देखता हूँ बीतती उमर अपनी सामने तेरे,
तुम साधना में बैठी हो संग मेरे ही,
उदय होते है दिन मेरे नयनों के निलय में तेरे,
मुग्ध होता हूँ झुर्रियाँ देख चेहरे पे तेरे।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम।

Tuesday 9 February 2016

सिसकी की प्रतिध्वनि

रूक रूक कर गूंजती एक प्रतिध्वनि,
रह रह कर सुनाई देती कैसी सिसकी,
कौन सिसक रहा आधी रात को वहाँ?

किस वेदना की है करुण पुकार यह,
रह रह कर उठती यह चित्कार कैसी,
छनन छन टूटने की आवाज है कैसी?

क्रंदन किसी बाला की है यह शायद,
दुखता है मन उस बाला की वेदना से,
क्या आसमान टूटा है उस बाला पे?

अनमनी चल रही हैं क्यूँ साँसें उसकी,
अन्तस्थ छलनी कर गई यह सिसकी,
हृदय-विदारक प्रतिध्वनि गूंजती क्युँ?

Friday 22 January 2016

मधुपान


उन हसीन लम्हातों की खामोशियों मे,
आहट की कल्पना भी प्यारी है तुम्हारी,
रंग कई बिखर जाते हैं आँखों के सामने
डूब जाता है सारा आलंम गुजरिशों में।

दूर एक साया दिखता बस तुम्हारी तरह,
शायद सुन लिया है गीत मेरा तुमने भी,
पास आते हो तुम किसी मंजर की तरह,
गूंज उठते हैं संगीत के स्वर ख्यालों में।

याद बनकर जब कभी छाते हो दिल पर,
शहनाईयाँ सी बज उठती हैं विरानियों मे,
सैंकड़ों फूल खिल उठते मधुरस बरसाते,
झूम उठता हृदय का भँवर मधुर पान से। 

Monday 18 January 2016

कोमल हृदय

दो निश्छल हृदय, नन्हे कोमल से,
मिल रहे वसुधा की हरियाली पर,
मन मष्तिष्क हैं अनन्त कल्पनाएँ,
कह देना चाहे बातें सारी मन की!

संवेदनाएँ बेजुवाँ असंख्य नन्हे से,
हृदय अनुभूति प्रकट करें तो कैसे,
निश्छल मन आस पलती नन्ही सी,
चल बैठ यहीं कर ले अपने मन की!

कुछ  तुम अपने  मन की कह लेना,
कुछ मैं अपने मन की भी कह लूँगा,
मतलब इन बातों का कोई हो ना हो,
इन बातों मे ही खुशियाँ जीवन की!

नन्हे हृदय की संवेदना ही एक भाषा,
कोमल मन की निष्कपट अभिलाषा,
दुविधाओं शंकाओं से परे निर्मल मन,
बस यही है मंत्र भावमयी जीवन की।

टूटा हृदय

अश्रुओं की अविरल मुक्त धार से अपनी,
अब क्युँ रोक रही हो राह उसकी?
मंडराते बादलों की तरह टूटा है हृदय उसका,
अश्रुबूँद क्या भर सकेंगे घाव उसकी?

टूटा हृदय बादलों सा नभ में व्याकुल मंडराता,
गर्जना कर व्यथा अपनी सबको सुनाता,
चीर जाती पीड़ा उसकी हृदय व्योम के भी,
निष्ठुर तुझे न आयी क्या दया जरा भी?

अब व्यर्थ किसलिए तुम पश्चाताप करती,
आँसुओं के सैलाब क्युँ बरबाद करती,
प्यास हृदय की बुझ चुकी खुद की आँसुओं से ही,
शेष बरस रहे अब झमाझम बारिश की बुंदों सी।

Sunday 17 January 2016

पिघलते शब्दों के नश्तर

पिघलते शब्दों के नश्तर,
स्वर वेदना के नासूर वाण बन,
छलनी कर जाते हृदय के प्रस्तर।

शब्दों मे होती इक कम्पन,
गुंजायमान करती वसुधा के मन,
जीवन की वीणा को ये छेड़ती निरंतर।

कम्पन गुम मेरे हृदय की,
शब्द वो पिघलते कहाँ अब मेरे मन,
ध्वनी के मधुर स्वर मिलते कहाँ परस्पर।

क्या कभी अब हँस पाऊँगा?
धुन हृदय प्रस्तर की क्या सुन पाऊँगा?
वेदना के वाण रह-रह चुभते हृदय पर।