Friday, 25 March 2016

दिया याद के तुम जला लेना

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

सुनसान सी राहों पर, साँस जब थक जाए,
पथरीली इन सड़कों पर, जब चाल लड़खड़ाए,
मृत्यु खड़ी हो सामने और चैन हृदय ना पाए,
तब साँसों के रुकने से पहले, याद मुझे तुम कर लेना।

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

दुनिया की भीड़ में, जब अपने बेगाने हो जाए,
स्वर साधती रहो तुम, गीत साधना के ना बन पाए,
घर के आईने मे तेरी शक्ल अंजानी बन जाए,
तब सूरत बदलने से पहले, याद मुझे तुम कर लेना।

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

पीर पर्वत सी सामने, साथ धीरज का छूट जाए,
निराशा के बादल हों घेरे, आशा का दामन छूट जाए,
आगे हों घनघोर अंधेरे और राह नजर ना आए,
तब निराश बिखरने से पहले, याद मुझे तुम कर लेना।

कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

2 comments:

  1. कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

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  2. कहीं जब साँझ ढ़ले, दिया याद के तुम जला लेना!

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