ले हल्दियों से रंग, गुलमोहर संग,
लगी झूलने फिर, शाखें अमलतास की!
छूकर बदन, गुजरने लगी, शोख सी पवन,
घोलकर हवाओं में, इक सौंधी सी खूश्बू,
गीत कोई सुनाने लगी, भोर की पहली किरण,
झूमकर, थिरकने लगा वो गगन!
ले किरणों से रंग, गुलमोहर संग,
लुभाने लगी मन, शाखें अमलतास की!
कर गईं क्या ईशारा, ले गई मन ये हमारा,
उड़ेलकर इन नैनों में, पीत रंग प्रेम का,
रिझाने लगी, झूल कर शाखें अमलतास की,
बात कोई, कहने लगी हर पहर!
ले सरसों सा रंग, गुलमोहर संग,
गुन-गुनाने लगी, शाखें अमलतास की!
पट चुकी, फूलों से, हर तरफ, राह सूनी,
मखमली सेज जैसे, बिछाई हो उसने,
दे रही निमंत्रण, कि यहीं पर, रमा लो धूनी,
अब, वश में कहां, ये अधीर मन!
ले सपनों सा रंग, गुलमोहर संग,
बुलाए उधर, वो शाखें अमलतास की!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा (सर्वाधिकार सुरक्षित)