Thursday 17 March 2016

रज रेणुका यादों की

रज रेणुका असंख्य तेरी यादों के,
दैवात बिखर आभूषित इस मन पे,
धुल रही रेणुकाएँ प्रभा तुषार तुहिन में,
भीग रही वल्लिका बेलरी शबनम में।

लघु लतिका सी यादों के ये पल,
लतराई दीर्घ वल्लिकाओं सी इस मन पर,
ज्युँ कुसुमाकर की आहट ग्रीष्म ऋतु पर,
प्रभामय दिव्यांश मेरी प्रत्युष वेला में।

अति कमनीय मंजुल रम्य वो यादें,
तृष्णा पिपास नूतन अभिनव सी,
मौन तोड़ बहती तन मे शोनित रुधिर सी,
द्युति सी ये यादें मोद प्रारब्ध जीवन में।

अलौकिक शुचि वल्लिकाओं सी यादें,
मधुऋतु विटप सी आवरित जीवन में,
आख्यायिका कहती ये तेरी गठबंधन के,
कान्ति प्रतिकृति यादों की बिंबित मन में ।

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