ऐ मन तू चल अब उस गाँव,
मनबसिया मोरा रहता जिस ठाँव!
निर्दयी सुधि लेता नहीं मेरी वो,
बस अपनी धुन में खोया रहता वो!
निस दिन तरपत ये काया गले,
ऐ मन तू चल अब बैरी से मिल ले!
विधि कुछ हो तो दीजो बताए,
हिय उस निष्ठुर के प्रेम दीजो जगाए!
क्या करना धन जब मन है सूना,
आ जाए वो वापस अब इस अंगना!
ऐ मन तू जा सुधि उनकी ले आ,
पूछ लेना उनसे उस मन में मैं हूँ क्या ?
साँवरे तुम बिसर गए क्युँ मुझको,
विह्वल नैन मेरे अब ढ़ूंढ़ रहे हैं तुझको!
ऐ मन तू ले चल कहीं उन राहों पर,
मनबसिया मेरा निकला था जिन राहों पर ।
मनबसिया मोरा रहता जिस ठाँव!
निर्दयी सुधि लेता नहीं मेरी वो,
बस अपनी धुन में खोया रहता वो!
निस दिन तरपत ये काया गले,
ऐ मन तू चल अब बैरी से मिल ले!
विधि कुछ हो तो दीजो बताए,
हिय उस निष्ठुर के प्रेम दीजो जगाए!
क्या करना धन जब मन है सूना,
आ जाए वो वापस अब इस अंगना!
ऐ मन तू जा सुधि उनकी ले आ,
पूछ लेना उनसे उस मन में मैं हूँ क्या ?
साँवरे तुम बिसर गए क्युँ मुझको,
विह्वल नैन मेरे अब ढ़ूंढ़ रहे हैं तुझको!
ऐ मन तू ले चल कहीं उन राहों पर,
मनबसिया मेरा निकला था जिन राहों पर ।
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