सांझ प्रहर आज फिर से दुखदाई,
अस्ताचल की किरणें विरहाग्नि लेकर आई,
मन के आंगन तम सा घन छाया,
मिलनातुर मन, विरह की अग्नि मे काया,
नैन निर्झर सरिता से कलकल छलके,
सुर हृदय विलाप कीे घन तड़ित सा कड़के,
विरह की यह वेला युगों से जीवन में,
साँझ प्रहर अब लगते संगी से जीवन के,
वो निष्ठुर दूर कहीं पर सदा हृदय में,
निर्दयी वो दूर पर प्यारा मुझको जीवन में,
रात दिन ज्युँ कभी मिल नहीं पाते,
सांझ घङी किन्तु दोनो नित मिलने को आते,
अगन इस विरह की ऐसे ही संग मेरे,
सांझ ढ़ले नित आ जाते ये लगने गले मेरे।
अस्ताचल की किरणें विरहाग्नि लेकर आई,
मन के आंगन तम सा घन छाया,
मिलनातुर मन, विरह की अग्नि मे काया,
नैन निर्झर सरिता से कलकल छलके,
सुर हृदय विलाप कीे घन तड़ित सा कड़के,
विरह की यह वेला युगों से जीवन में,
साँझ प्रहर अब लगते संगी से जीवन के,
वो निष्ठुर दूर कहीं पर सदा हृदय में,
निर्दयी वो दूर पर प्यारा मुझको जीवन में,
रात दिन ज्युँ कभी मिल नहीं पाते,
सांझ घङी किन्तु दोनो नित मिलने को आते,
अगन इस विरह की ऐसे ही संग मेरे,
सांझ ढ़ले नित आ जाते ये लगने गले मेरे।
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