Thursday, 31 March 2016

चीख निकल आई दर्द की

दर्द को दर्द हुआ तब चीख निकल आई दर्द की!

लम्बी श्रृंखला दर्द के मणिकाओं सी,
एक के बाद एक दर्द एक नई सी,
सदियों से चुभन रोज एक नए दर्द की,
खीज चुका मैं देख तमाशा दर्द की,
तोड़ डाला है घर मैने दर्द के उन गाँवो की!

दर्द को दर्द हुआ तब चीख निकल आई दर्द की!

अब अंजाना सा है हर दर्द मुझसे,
दंश दर्द का होता क्या समझा है दर्द नें,
तिरस्कार जी भरकर झेला है दर्द नें,
दर्द की झोली में रख डाले हजार दर्द मैंनें,
अवहेलना की है मैने दर्द के उच्च-आदेशों की!

दर्द को दर्द हुआ तब चीख निकल आई दर्द की!

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