Saturday 19 March 2016

झील का कोई समुंदर नहीं

कहते हैं कि झील का कोई समुंदर नही होता!
मैं कहता हूँ कि झील सा सुन्दर कोई समुन्दर नही होता!

अपनी ही स्थिरता, विराम, ठहराव है उस झील का,
आभा अद्भुद, छटा निराली, चारो तरफ हरियाली,
प्रकृति की प्रतिबिम्ब को खुद में लपेटे हुए,
अपने आप में पूरी पूर्णता समेटे हुए झील का किनारा।

प्यार है मुझको उस ठहरे हुए झील से,
रमणीक लगती मन को सुन्दरता तन की उसके।

कमल कितने ही जीवन के खिलते हैं इसकी जल में,
शान्त लगती ये जितनी उतनी ही प्रखर तेज उसके,
मौन आहट में उसकी स्वर छुपते हैं जीवन के,
बात अपने मन की कहने को ये आतुर नही समुन्दर से।

झील का अपना ही मन, जो आकर मिलती है मेरे मन से।

No comments:

Post a Comment