Saturday, 9 January 2016

तृष्णा

तृष्णा,ख्वाहिशें,हसरतें,चाहतें अनेक,
दिल, मन, प्राण जीवन बस एक।

अभिलाषा उत्कंठा के असंख्य कण,
चिर यौवन हो उठते मन में हर क्षण। 

आकांक्षाए वश में नही मानव की,
इच्छाएँ प्रबल  गगण भेद देने की।

श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम करने की आकांक्षा,
सुन्दर से सुन्दरतम पाने की ईच्छा।

ऊँचाई के शिखर छू लेने की तमन्ना,
विहंगम नव सृष्टि रचने की कामना।

ब्रम्ह के परे पहुँचनेे की मनोकामना,
क्या तृप्त होगी कभी मानव की तृष्णा?

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