साथ चला तू,
जिसे लेकर जीवन भर,
जिसकी फिक्र तू,
करता रहा सारी उमर,
वह मात्र स्थुल शरीर नहीं हो सकता?
क्या मार्ग तेरा गलत दिशा मुड़ चुका है?
तेरी चिन्ता तो,
तेरी काया के भी परे है,
पर भटकता तू,
सदा भौतिक सुख के पीछे है!
यश कीर्ति कहाँ रही तेरी प्राथमिकता?
क्या जीवन तेरा कहीं पर खो चुका है?
नभ पर तू,
ऊँचा उड़ता गिद्ध को देख,
उस ऊचाई पे,
उसे अहम के वहम ने है घेरा,
क्या कर्म उसके दे पाएगी उसे प्रभुसत्ता?
क्या कर्म पथ तेरा कहीं भटक चुका है?
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