Monday, 25 January 2016

अन्तर्द्वन्द

दिल की धकधक और मन की फकफक,
अन्तःद्वन्द घनघोर दोनों में नित झकझक।

दिल केंन्द्र भावना विवेचना का,
महसूस कर लेता स्पंदन हृदय का,
विह्वल हो प्यार में धड़कता पागल सा,
एकाकीपन के पल बेचैन हो उठता,
धड़क उठता मंद आहटों से भी धकधक।

मन कहता, दिल तू मत हो विह्वल,
विवेचना भावनाओं की तू मत कर,
राह पकड़ नित नई लगन की,
उड़ान ऊँची धर, मत एकाकीपन की सोच,
आहटों की मत सुन, अपनी लय मे तू धड़क।

दिल कहता, मन तू तो है स्वार्थी,
बेचैन रहता है तू भी अपनी चाह के पीछे,
टूटता है तब तू भी जब कोई ना पूछे,
मंजिल तेरे राह की बहुत दूर अंजान,
तू कभी मेरी भी सुन ले मत कर फकफक।

दिल की धकधक और मन की फकफक,
अन्तःद्वन्द घनघोर दोनों में नित झकझक।

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