खे रहा पतवार जीवन का,
चल रहा तू किस पथ निरंतर,
अनिश्चित रास्तों पर तू दामन धैर्य का धर,
है पहुँचना तुझे उस कठिन लक्ष्य पर।
देख बाधाएँ सम्मुख विकट,
छोडना़ मत पतवार तुम,
निश्चित होकर तू अपना कर्म कर,
कर्म तेरा तुझको ले जाएगा लक्ष्य पर।
अनिश्चित सदा ही कर्म फल,
पर कर्म से यदि रहा यह पथ वंचित,
हो न पाएगा यश तेरा संचित,
धैर्य तेरा ले जाएगा तुझे उस लक्ष्य पर।
निशान कठिन रास्तों के भी,
मिलते नही लक्ष्य शिखर पर कभी,
तू बचा सका गर अपना अस्तित्व,
मिल जाएगा अपनत्व तुझे उस लक्ष्य पर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 02 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteइस पुरानी रचना को सम्मान देने हेतु अत्यंत ही आभार दी।
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी सकारात्मकता से छलकती हुई ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीया शुभा जी।
Deleteदेख बाधाएँ सम्मुख विकट,
ReplyDeleteछोडना़ मत पतवार तुम,
निश्चित होकर तू अपना कर्म कर,
कर्म तेरा तुझको ले जाएगा लक्ष्य पर।
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन
सही कहा सच्चे मन से कर्म करते जाओ आगे लक्ष्य तक के रास्ते खुद बखुद खुलते जाते हैं
वाह!!!
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुधा देवरानी जी।
Delete