Monday, 25 January 2016

व्यथा की कथा

व्यथा की भी अपनी ही करुण कथा!

व्यथा गहराती रोती चिल्लाती,
व्यथा कहती व्यथा ही रोती,
झांकती व्यथा चहुँ ओर फिर देखती,
हृदय के अन्तस्थ व्यथा सिमटती,
व्यथा व्यथित स्वयं में अकुलाती।

व्यथा की भी अपनी ही करुण कथा!

मन ही मन खुद घुटती व्यथा,
राह देखती संवेदनाओं का,
फिर स्वयं ही संकुचित होती व्यथा,
जग बैरी सदा व्यथा ही जनमता,
वेदना व्यथा की यहाँ कौन समझता।

व्यथा की भी अपनी ही करुण कथा!

कथा व्यथा की कितनी लम्बी,
व्यथा की वेदना व्यथा ही जानती,
परस्पर व्यथा एक दूजे से कहती,
दुनियाँ व्यथा की व्यथित क्यूँ रहती?
पीड़ा व्यथा के ही हदय क्युँ पलती?

व्यथा की भी अपनी ही करुण कथा!

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