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Monday 23 May 2016

एक आलाप जीवन का

तुम तो आलाप भर उभरती हो मेरे गीतों में ढ़लकर।

हकीकत हो तुम मेरे अर्धजीवन की,
अर्धांगिनी हो तुम ही मेरी अधूरे सपन जीवन की,
संगिनी तुम ही अनचाहे इन दूरियों की,
सपनों में तुम बिखरते हो ख्यालों से निकलकर।

क्षण-क्षण छू जाते हो तुम हर रोज मुझे,
एक नया अधूरा मनचाहा ख्वाब सा बनकर...
अर्धजीवन की राहों पर देखता हूँ मैं तुमको छूकर,
हकीकत बन जब उभरते हो ख्वाबों से चलकर।

तुम अधूरी सी गीत कल्पना की चादरो में लिपटी,
कुछ शब्द अधूरे है मेरे दामन मे भी लिपटे,
अधूरे ख्वाबों के पल मे वो गीत पूरे से बनने लगते,
ये दुनिया यूँ ही कहती है कि तुम मेरे करीब नहीं........

तुम तो आलाप भर उभरती हो मेरे गीतों में ढ़लकर।

Tuesday 17 May 2016

अजनबी भँवरा

भँवरों के गीत सब, अजनबी हो चुके हैं अब,
गुनहुनाहटों में गीत की, अब कहाँ वो कसक,
थक चुका है वो भँवरा,  गीत गा-गा के अब।

वो भी क्या दिन थे, बाग में झूमता वो बावरा,
धुन पे उस गीत की,  डोलती थी कली-कली,
गीत अब वो गुम कहाँ, है गुम कहाँ वो कली।

जाने किसकी तलाश में अब घूमता वो बावरा,
डाल डाल घूमकर,  पूछता उस कली का पता,
बेखबर वो बावरा, कली तो हो चुकी थी फना।

अब भी वही गीत प्रीत के,  गाता है वो भँवरा,
धुन एक ही रात दिन, गुनगुनाता है वो बावरा,
अजनबी सा बाग में, मंडराता अब वो बावरा।

Wednesday 27 April 2016

कहता है विवेक मेरा

कहता है हृदय मेरा, चल ख्वाहिशों का मुँह मोड़ दे तू।

तमन्नाओं की महफिल फिर जगमगाई है कहीं,
कहता है मन,
गीत कोई अधूरा सा तू गाता ले चल,
रस्मों की दम घोंटती दीवारों से,
तू बाहर निकल आ चल।

अधूरी ख्वाहिशों के शहर मे तमन्ना जागी है फिर,
कहता है दिल,
परिदें ख्वाहिशों के उड़ा ले तू भी चल,
छुपी है जो बात अबतक दिल मे,
कह दे तू भी आ चल।

महफिल ख्वाहिशों की ये, तमन्नाओं को पीने दे फिर,
कहता है विवेक,
मैं ना निकलुंगा आदर्शों की लक्ष्मन रेखा से,
तमन्ना मेरी पीकर भटके क्युँ,
चल ख्वाहिशों का मुँह मोड़ दे तू।

कहता है हृदय मेरा, विवेक की अनदेखी ना कर तू।

Sunday 24 April 2016

निःशब्द

निःशब्द कोई क्युँ बिखरे इस धरा पर,
निष्प्राण जीवन कैसे रह पाए इस अचला पर,
बिन मीत कैसे सुर छेड़े कोई यहाँ पर,
आह! स्वर निःशब्दों के निखरते आसमाँ पर।

प्रखर हो रहे हैं अब, निःशब्द चाँदनी के स्वर,
मूक शलभ ने भी ली है फिर यौवन की अंगड़ाई,
छेड़ी है निस्तब्ध निशा ने अब गीत गजल कोई,
तारों के संग नभ पर सिन्दूरी लाली छाई।

कपकपी ये कैसी उठी, निःशब्दो के स्वर में,
आ छलके है क्यूँ नीर, निःशब्दों के इन पलकों में,
हृदय उठ रही क्यूँ पीर निःशब्दों के आलय में,
काश! कोई तो गा देता गीत निःशब्दों के जीवन में।

Thursday 21 April 2016

प्रतीक्षारत

स्नेह मन का प्रतीक्षारत, तुम प्रतीक्षा के ये पल ले लो!

मैं सागर प्रीत का एकांत स्नेह भरा,
सिहरता पल-पल प्रतीक्षा की नेह से भरा,
प्रतीक्षा की इल पल को स्नेहित कर दो,
नेह का तुम मुझसे इक अटूट आलिंगन ले लो।

गीत मन की प्रतीक्षारत, तुम गीत मेरे मन के ले लो!

सुन ऐ मेरे मन के चिर प्रतीक्षित मीत,
कहता है कोई, प्रतीक्षा तो स्वयं भी है एक गीत,
बार बार जिसको जग कर ये मन गाता है,
तुम मेरी प्रतीक्षा का चिर स्नेहित गीत ले लो।

युगों से मन प्रतीक्षारत, तुम प्रतीक्षा के ये युग ले लो!

प्रतीक्षा इस सागर की गहराती हर पल,
गीत वही इक धुन की चिर युगों से प्रतीक्षारत,
प्रतीक्षा के गीतों मे मैं जब-जब जागा हूँ,
कहता उस पल ये मन, हृदय तुम मेरा ले लो।

जागा हूँ मैं प्रतीक्षारत, नींद के पल मेरे मुझको दे दो!

Thursday 14 April 2016

अनसुना कोई गीत

अनकहा कोई गीत गुनगुना लूँ मैं, ओ मन प्रीत मेरी!

यूँ तो आपने सुने होंगे गीत कई,
मिल जाएंगे आपको राहों में मीत कई,
कोई मिलता है कहाँ जो सुनाए अनकहा गीत कोई,
धड़कनों ने छेड़ी है मेरी इक संगीत नई,
आ सुना दूँ वो गजल तुझको, ओ मन मीत मेरी।

अनसुना कोई गीत गुनगुना लूँ मैं, ओ मन प्रीत मेरी!

तेरी धड़कनों में बजे होंगे संगीत कई,
कहने वालों ने कहे होंगे गजल-गीत कई,
दिल धड़कता है मेरा गा रहा अनसुना गीत कोई,
गुनगना लूँ मैं आपके सामने संगीत वही,
आ सुना दूँ वो गजल तुझको, ओ मन मीत मेरी।

नग्मा-ए-साज नया गुनगुना लूँ मैं, ओ मन प्रीत मेरी!

Wednesday 13 April 2016

तुम भी गा देते

फिर छेड़े हैं गीत,
पंछियों नें उस डाल पर,
कलरव करती हैं,
मधु-स्वर में सरस ताल पर,
गीत कोई गा देते,
तुम भी,
जर्जर वीणा की इस तान पर।

डाली डाली अब,
झूम रही है उस उपवन के,
भीग रही हैं,
नव सरस राग में,
अन्त: चितवन के,
आँचल सा लहराते,
तुम भी,
स्वरलहर बन इस जीवन पर।

फिर खोले हैं,
कलियों ने धूँघट,
स्वर पंछी की सुनकर,
बाहें फैलाई हैं फलक नें
रूप बादलों का लेकर,
मखमली सा स्पर्श दे जाते,
तुम भी,
स्नेहमयी दामन अपने फैलाकर।

Tuesday 22 March 2016

बेमतलब कोई बात बने

बेमतलब ही आँचल स्नेह का मिल जाए तब कोई बात बने!

वो कहते कुछ अपनी कह लूँ तब कोई बात बने!
साथ कहाँ कोई देता जग में यूँ ही,
यूँ बिन मतलब के बात यहाँ करता क्या कोई?
सबकी अपनी धुन सबकी अपनी राह,
मतलब की है सब यारी मतलब की सब बात,

बेमतलब की बातें दिल की कोई सुन ले तब बात बने।

वो कहते दो चार कदम मैं चल लूँ तब साथ बने!
क्या कदमों का चलना ही जीवन है?
दो चार कदम संग ढ़लना ही क्या जीवन है?
सबकी अपनी चाल सबका अपना रोना है,
जीवन बस इक राग, साथ-साथ जिसको गाना है।

बेमतलब ही कोई संग गीत गुनगुना ले तब कोई बात बने।

बेमतलब ही साया प्यार का मिल जाए तब कोई बात बने!

Friday 4 March 2016

जब जब तुम हँसती हो

राग नए नए बन जाते हैं,जब जब तुम हँसती हो,

राग मल्हार बज गए तेरे हँसने से,
गीत बादलों ने अब छेड़ा है पीछे से,
बूँदों की झमझम कर रही करताल,
घटाएँ नृत्य कर रही ऩभ में विकराल।

लावण्य चेहरे की बढ़ जाती है जब तुम हसती हो,,

निराली छवि निखरी है चाँदनी सी,
होठों पर खिल गई हजार कलियाँ भी,
चाँद भी देखो शरमा रहा सामने नभ में,
तारों की बारात चल प़ड़ी आपके साथ में।

मोहक जीवन हो जाता है जब जब तुम हसती हो,

इक इक हँसी आपकी मरहम सी,
घाव हजार दुखों का जीवन के ये भर देती,
घायल चातक मैं आपके चितवन का,
आपकी मुस्कुराहट के मरहम का मैं रोगी।

तेरे सुर मे कोयल गाती है, जब जब तुम हसती हो।

राग ये कैसी छिड़ गई हँसने से आपके,
कूक कोयल की भूली है गीतों में आपके,
इस सुर की बहार फैली है अब चारो ओर,
मैं आपके गीतों का प्रेमी, है मेरा मन विभोर।

राग नए नए बन जाते हैं,जब जब तुम हँसती हो।

Thursday 25 February 2016

गीत वही तुम दोहराओ ना!

मन मेरा मुखरित कर जाती, संगीत नई तुम जब गाती।

मन मेरा आज विकल गीत कोई तुम गाती,
गीत वही मैं सुन लेता जो तुम मन से गाती,
राग मुखर मैं भी करता जो तुम संग दुहराती,
गीत मधुर मैं गा पाता जो तुम संग संग गाती।

मन मेरा पुलकित हो जाता, आज संगीत कोई तुम गाती।

मेरे जीवन की वीणा है अब हाथों मे तेरे,
कितने ही मधु संगीत संग संग हमने हैं छेड़े,
तुम गाती जो संगीत मन खिल उठते मेरे,
आज कोई गीत नई, संग दोहराओ तुम मेरे।

मन मेरा पुलकित कर जाओ, गीत कोई तुम छेड़ो ना।

जीवन, मरण, कुछ दोनों के ही हैं हम साथी,
इस वीणा की संगीत अधूरी गीत कोई तुम गाती,
आरम्भ तुम्ही से जीवन का अंत तुम्ही कर जाती,
उदास पलों मे जीवन के गीत वही तुम दोहराती।

जीवन को तुम मुखरित कर दो, संगीत मेरे संग छेड़ो ना।

Saturday 13 February 2016

स्वर नए गीत के गा

धीर रख! स्वर नए गीत के गा, चल मेरे साथ अब।

रहता था आसमाँ पर एक तारा यही कहीं,
गुजरा था टूट कर एक तारा कभी वहीं,
मिलते नही वहाँ उनकी कदमों के निशान अब,
रौशनी है प्रखर, पर दिखती नही राह अब।

भटक रहे हैं हम किन रास्तों पे अब?
दिखते नही दूर तक मंजिलों के निशान अब,
अंतहीन रास्तों मे भटका है अब कारवाँ,
बिछड़ी हुई हैं मंजिले, भटकी हुई सी राह अब।

बेसुरी लय सी रास्तों के गीत सब,
बजती नही धुन कोई भटकी हुई राहों में अब,
आरोह के सातों स्वर हों रहे अवरुद्ध अब,
धीर रख! स्वर नए गीत के गा, चल मेरे साथ अब।

Thursday 11 February 2016

मेरी साधना

गीत मैं वो गा न सका, क्या कभी गा पाऊंगा?

सदियों साधना की उस संगीत की,
अभिमान था मुझको मेरे दृढ़ विश्वास पर,
पर साथ दे न सका मुझको मेरा अटल विश्वास,
असफल रही कठिन साधना मेरी।

गीत मैं वो गा न सका, गीत मैं वो दोहरा न सका।

सुर ही कठिन है इस जीवन संगीत का,
या साधना के योग्य नही बन पाया मै ही शायद,
साधक हूँ मैं पर! निरंतर रत रहूंगा साधना मे,
है मुझको विश्वास लगन पर मेरी।

गीत मैं जो गा न सका, गीत मैं वो फिर दोहराऊंगा!

मैं प्रीत का गीत

प्रिय, मैं प्रीत का गीत बन तुम पर अर्पित हो जाऊँ।

मंदिर इक बनी है कल्पनाओं में मेरी,
सपन सलोनी मूरत रखी है वहाँ तेरी,
अर्पित करता प्रीत नित पूजा में तेरी।

प्रिय, चाहत मेरी पलकों में तेरी सपने मैं सजाऊँ।

सपनों के भँवर जाल मे उलझा तेरी,
मोहक वो स्वप्न जिसमें है सूरत तेरी,
सपनों सम रंगीन दुनिया तुझमें मेरी।

प्रिय, तेरे शब्दों से मन के मर्म की कहानी लिख जाऊँ। 

विवश मर्म मन के मुखरित हो कैसे,
अधरों के शब्द निःशब्द पड़े हों जैसे,
चाह अधरों को तेरी शब्दों की जैसे।

प्रिय, सुरमई संगीत बन तेरे अधरों पर रंजित हो जाऊँ।

Wednesday 27 January 2016

उम्मीद

छंद रचता कोई गीत गाता उम्मीद का,
हसरतें पलती दिलों मे इक उम्मीद की।

ख्वाहिशें पुरस्सर हुई हैं यहाँ उम्मीद से,
फूल खिलते वादियों मे इक उम्मीद से।

तन्हा बसर करता जहाँ इक उम्मीद से,
उम्र कटती गालिबों की इक उम्मीद से।

कोई छोड़ पाता नहीं दामन उम्मीद का,
मुफलिसी में भी पला लम्हा उम्मीद का।

उम्र भर उम्मीद की पंख लिए उड़ते रहे,
पंख उम्मीदों के यहाँ हर पल कतरे गए।

Saturday 23 January 2016

तुम गीत मेरी

तुम प्रीत, तुम संगीत मेरी, जीवन छंद सी कलरव करती,
अधरों से लिपटी तुम गीत मेरी।

स्वर विहग सम चहकती, जीवन पल गुँजित तुझसे ही,
कुसुमित मन उपवन तुम मेरी।

यौवन का मधुरस तुम, मधुर स्वर की रागिनी तुम मेरी,
कुंठित पल की स्वर संगीत तुम मेरी।

जीवन काया मिट्टी तुम बिन, निःस्वर विरहाग्नि जीवन,
जीवन स्वर मे घुली प्राण तुम मेरी।

Monday 28 December 2015

फिर दैदिप्य हुआ पूर्वांचल

फिर दैदिप्य हुआ पूर्वांचल,
प्रखर भास्कर ने पट हैं खोले,
लहराया गगण ने फिर आँचल,
दृष्टि मानस पटल तू खोल,
सृष्टि तू भी संग इसके होले।

कणक शिखर भी निखर रहे है,
हिमगिरि के स्वर प्रखर हुए हैं,
कलियों ने खोले हैं घूंघट,
भँवरे निकसे मादक सुरों संग,
छटा धरा का हुआ मनमोहक।

प्रखरता मे इसकी शीतलता,
रोम-रोम मे भर देती मादकता,
विहंगम दृष्टि फिर रवि ने फैलाया,
प्रकृति के कण-कण ने छेड़े गीत,
तज अहम् संग इनके तू भी तो रीत।