Monday, 4 January 2016

बंधन मुक्त

मैं बंधन मुक्त हो जाऊँ।

मुक्त जीवन जाल से कर दो,
हृदय अन्तस् तेरा छू जाऊँ,
उत्कंठाओ को नव स्वर दे दूँ,
मर्म जीवन का समझ पाऊँ।

कल्पनाओं के मुक्त पंख दे दो,
उन्मुक्त पंछी बन ऊड़ जाऊँ,
ऊड़ बैठूं कभी हिमगिरि पर,
कभी वृक्ष विशाल चढ़ जाऊँ।

मुझको विशाल व्योम दे दो,
आभाओं के दीप बन जल जाऊँ,
रचना नवश्रृष्टि की कर पाऊँ।
मुक्त भव-बाधा से मैं हो जाऊँ।

मैं बंधन मुक्त हो जाऊँ।

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