Thursday, 7 January 2016

पहरे लगे हैं

बीते वर्षों हृदय की अनुभूति समेटे,
युग बीते अनेकों ख्वाहिशें देखे,
पहरे लगे हैं यहाँ हसरतों पे!

आँखों की पलकों मे पलते कई सपनें,
अभिलाषा के यौवन लेकिन खोए,
पहरे लगे हैं यहाँ पलकों पे!

शीतल जल की तृष्णा अमिट जीवन मे,
व्रत प्यास का धारण किया है हमनें,
पहरे लगे हैं यहाँ तृष्णाओं पे!

कामना के कंच कलश से ख्वाब हृदय में,
बुझते नही प्यास वारिधि मे भी अब,
पहरे लगे है यहाँ ख्वाबों पे!

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