Tuesday, 5 January 2016

यादों के साए

रथ किरण संग याद तुम्हारी,
मन को विस्मृत कर जाती हर प्रात,
जाने क्या-क्या कहती रहती,
किन बातों में है उलझी रहती,
सपने नए कई बुन जाती,
तृष्णगी तन्हाई के तृप्त कर जाती,
फासले सदियों के लगने लगते कम,
सूखी पथराई आँखें भी हो जाती हैं नम।

जर्जर वीणा के तारों से खेलती,
विरानियों में दिल के शहर कर जाती,
शांत मन में निर्झर लहर सी इठलाती,
दिल में चंचल तीस्ता सी मदमाती,
सांझ धुमिल किरण देख फिर मुरझा जाती,
लौट जाती हो तुम ढ़लती चाँद संग,
कहती वापस आऊँगी रथकिरण संग,
छोड़ जाती हो फिर तन्हाई मे कर विह्वल मन।

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