मैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
शलभ सा जीवन प्रीत ज्वाला संग,
कितना अतिरेकित कितना विषम!
ज्वाला का चुम्बन कर शलभ जल जाता ज्वाला संग,
दुःस्साह प्रेम का आलिंगन कितना विषम।
मैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
बाती सा कोमल प्रीत दीपक संग,
कितना अतिरेकित कितना विषम,
प्रकाश भर राख बन जाता जल दीपक संग,
प्रीत संग जलते जाना कितना विषम।
मैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
जलने मे ही सुख है जानता शलभ ये,
जल मिटने में ही सुख है जानती बाती ये,
तम पर विजय कर पाती बाती जलकर ज्वाला संग,
चिर सुख पाने को गरल पीना कितना विषम।
मैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
क्या मिल पाएगा मुझको भी जीवन समुज्जवल सम?
शलभ सा जीवन प्रीत ज्वाला संग,
कितना अतिरेकित कितना विषम!
ज्वाला का चुम्बन कर शलभ जल जाता ज्वाला संग,
दुःस्साह प्रेम का आलिंगन कितना विषम।
मैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
बाती सा कोमल प्रीत दीपक संग,
कितना अतिरेकित कितना विषम,
प्रकाश भर राख बन जाता जल दीपक संग,
प्रीत संग जलते जाना कितना विषम।
मैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
जलने मे ही सुख है जानता शलभ ये,
जल मिटने में ही सुख है जानती बाती ये,
तम पर विजय कर पाती बाती जलकर ज्वाला संग,
चिर सुख पाने को गरल पीना कितना विषम।
मैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
क्या मिल पाएगा मुझको भी जीवन समुज्जवल सम?
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमैं लघु तन झुलसाकर चाहूँ जीवन उज्जवल सम!
ReplyDelete- अतुल्य ...
बहुत सुंदर सृजन आदरणीय सर.
ReplyDeleteसादर