Saturday, 6 February 2016

कुछ दे न सका उसको

कुछ दे न सका उसको मै जीवन में,
कुछ समझ न सका पीड़ा, वेदना, भावना उसकी।

पीड़ा कौन सी तड़पाती उसे,
पीड़ हृदय के मैं समझ न सका उसकी,
वेदना किस व्यथा की उसे,
व्यथा का विस्तार समझ न सका उसकी,
देखती रही वो आँखें मुझको ही,
मन के मृदुभाव कभी पढ़ न सका उसकी,

कुछ समझ न सका पीड़ा, वेदना, भावना उसकी।

कुछ दे न सका उसको मैं,
कांटे रास्तों के मैं चुन न सका उसकी,
जाने किस आग मे राख वो,
आग दामन से मैं बुझा न सका उसकी,
भटकती है अब भी रूह वो,
स्याह काली रातों में दरबदर यहाँ उसकी।

कुछ समझ न सका पीड़ा, वेदना, भावना उसकी।

पर विदा इस दुनियाँ से अब वो,
जरूरत दुनियादारी की नही अब उसको,
आग, प्यास, पीड़ा, वेदना, काँटों से अब परे वो,
जाने किसकी प्यास थी उन आँखों को,
तलाशती थी क्या अंत तक उदास आँखें उसकी,
पूछ भी न पाए लब मेरे जीवन भर उससे।

कुछ दे न सका उसको मै जीवन में,
कुछ समझ न सका पीड़ा, वेदना, भावना उसकी।

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