स्पर्श किया किसी ने दामन,
पीठ के पीछे से चुपके से,
कौंधी कहीं तब मेरी चितवन,
महसूस हुआ जैसे कंधों पर,
अपनी सी गर्माहट किसी ने रख दी।
उस स्पर्श मे कैसा अपनापन,
चल पड़ा परिमल का झोंका,
गूँजी पड़ीं फिर खिलखिलाहट,
टूक-टूक होकर बिखरा सन्नाटा,
निखरे होठ जब मर्माहट उसने रख दी।
स्पर्श किया था उसने जीवन,
स्पर्शानुभूति की सिलवटे मन में,
हृदय मंदार मंद मंद मुस्काता,
नींव रिश्तों की रखी तनमन में,
सिलसिले ख्वाबों के बनी हकीकत सी।
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