निशांत पलों को, आराम जरा!
चहक कर, बहकेगी निशिगंधा,
और, जागेंगे निशाचर,
रह-रह कर, महकेंगे स्तब्ध पल,
ओढ़, तारों का चादर,
मुस्काएंगी, दिशांत जरा!
निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा,
निशांत पलों को, आराम जरा!
कहीं, खामोश जुबांनें बोलेंगी,
वो, राज कई खोलेंगी,
गुजरेंगी, हद से जब उनकी बातें,
देकर, भींनी सौगातें,
भीगो जाएंगे, नैन जरा!
निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा,
निशांत पलों को, आराम जरा!
कलकल सी ये स्निग्ध निशा,
चमचम, वो कहकशां,
पहले, जी भर कर, कर लें बातें,
फिर मिलने के वादे,
आपस में, कर लें जरा!
निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा,
निशांत पलों को, आराम जरा!