तनिक छाँव, कहीं मिल जाए,
तो, जरा रुक जाऊँ!
यूँ तो, वृक्ष-विहीन इस पथ पर,
तप्त किरण के रथ पर,
तारों के उस पार, तन्हा मुझको जाना है,
इक साँस, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
काश ! कहीं, इक पीपल होता,
उन छाँवों में सो लेता,
पांवों के छालों को, राहत के पल देता,
इक छाँव, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
वो कौन यहाँ जो छू जाए मन,
कौन सुने ये धड़कन,
बंजर से वीरानों में, फलते आस कहाँ,
इक आस, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
पथ पर, कुछ बरगद बोने दो,
पथ प्रशस्त होने दो,
चेतना के पथ पर, पलती हो संवेदना,
इक भाव, कहीं जग जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!
तनिक छाँव, कहीं मिल जाए,
तो, जरा रुक जाऊँ!
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