तू चुप क्यूँ है, री सरिता?
तुझ संग, लहरों सा जीवन बीता,
कल-कल करते, कोलाहल,
ज्यूँ, छन-छन, बज ऊठते पायल,
कर्ण प्रिय, तेरी वो भाषा,
फिर बोल जरा सा!
तू चुप क्यूँ है, री सरिता?
पथ के काटों से, तू लड़ती आई,
हर बाधाओं से, तू टकराई,
संग बहे तेरे, पथ के लाखों कण,
लहरों में, तेरी है आशा,
फिर डोल जरा सा!
तू चुप क्यूँ है, री सरिता?
सावन था, जब बरसे थे बादल,
पतझड़ ने, धोए ये काजल!
मौसम के बदले से, रीते लम्हों में,
रंग सुनहरा, इंद्रधनुष सा,
फिर घोल जरा सा!
तू चुप क्यूँ है, री सरिता?
अल्हड़ सी, यौवन की चंचलता,
शीलत सी, मृदु उत्श्रृंखलता,
कल-कल धारा, बूँदें फिर से लाएंगी,
छलका दे, मदिरा के पैमाने,
फिर बोल जरा सा!
तू चुप क्यूँ है, री सरिता?
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)