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Thursday, 6 May 2021

दोस्तों के नाम

लो दोस्त......

गर, रिक्त हो चला हो, 
तूणीर तेरा,
तेरी धमनियों में, ना थम रहा हो, 
रक्त का, उठता थपेरा,
तीर ले लो, तुम ये भी मेरा,
बरसों से, पड़े है ये,
जंग खाए,
अपनों पर, जो मुझसे चल न पाए,
शायद, संभाल ले ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

फिर भी, ना थमे गर,
तेरा जिगर,
तीर सारे, हो चले जब बेअसर,
भर लेना, फिर तूणीर,
या, घोंप देना, कोई खंजर,
ना रहे, कोई कसर,
ना मलाल,
रक्त, शायद मेरा, बन उड़े गुलाल,
शायद, निकाल दे ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

तुम लो, सारी दुआएँ,
सलाम मेरा,
यूँ चमकता रहे, तेरा हर सवेरा,
पर ना, भूल जाना,
दिल ही तेरा, मेरा ठिकाना,
सदा ही, धड़कूंगा मैं,
ना रुकुंगा,
हृदय मध्य, तुमसे ही आ मिलूंगा,
शायद, संभाल ले ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday, 27 March 2021

उड़े जो रंग

उड़े जो रंग कहीं, तू ही तू, नजर आए,
हजार ख्वाब कहीं, बन के यूँ, उभर आए!

तेरे ख्यालों के, रंग हैं ये शायद,
या कोई, भ्रम है ये मेरा,
या यूँ ही, बन के इक स्वप्न, तुम उभर आए
उड़े जो रंग कहीं.....

समाए हो, इन आँखों में कहीं, 
या यहीं, ये घर है तेरा,
या यूँ ही, कोई सवाल सा, तुम उभर आए,
उड़े जो रंग कहीं.....

गुन-गुन, कोई फाल्गुन सी तू,
या, दुल्हन हो कोई,
या यूँ ही, लाल गुलाल सा, तुम उभर आए,
उड़े जो रंग कहीं.....

तेरे हैं, रंग कई, तू ही तू, नजर आए,
हजार ख्वाब कहीं, बन के यूँ, उभर आए!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday, 10 March 2020

घुले गुलाल

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

अंग-अंग, घुल चुके अनेक रंग,
लग रहे हैं, एक से,
क्या पीत रंग, क्या लाल रंग?
गौर वर्ण या श्याम वर्ण!
रंग चुके एक से,
हुए हैं आज हल, कई सवाल!

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

प्रश्नों की झड़ी, यूँ ही थी लगी,
भिन्न से, सवाल थे!
बड़े ही अजीब से, जवाब थे!
वो अजनबी से जवाब,
एक स्वर में ढ़ले,
धुल चुके हैं आज, हर मलाल!

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

अभिन्न से बने, वो विभिन्न रंग,
ढ़ंके रहे, गुलाल से,
सर्वथा भिन्न-भिन्न, से ये रंग!
बड़े अजीज, हैं ये रंग,
हरेक प्रश्न से परे,
खुद गुलाल, कर रहे सवाल!

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

होली 2020
सामाजिक समरसता की कामनाओं सहित बधाई

Monday, 2 March 2020

कैसी फगुनाहट

संग हो, उम्मीदों की आहट!
तुम, तब ही आना, ऐ फगुनाहट!

खून-खून, है ये फागुन,
धुआँ-धुआँ, उम्मीदें,
बिखरे, अरमानों के चिथरे,
चोट लगे हैं गहरे,
हर शै, इक बू है साजिश की,
हर बस्ती, है मरघट!

संग हो, उम्मीदों की आहट!
तुम, तब ही आना, ऐ फगुनाहट!

छलनी-छलनी, ये मन,
छलकी सी, आँखें,
छूट चले, आशा के दामन,
रूठ चले हैं रंग,
डूब चुके, हृदय के तल-घट,
छूट, चुके हैं पनघट!

संग हो, उम्मीदों की आहट!
तुम, तब ही आना, ऐ फगुनाहट!

बस्ती थी, ये कल-तक,
है अब, ये मरघट,
घुल चुके भंग, इन रंगों में,
धुल चुके हैं अंग,
उड़ चले गुलाल, सपनों से,
अब कैसी, फगुनाहट!

संग हो, उम्मीदों की आहट!
तुम, तब ही आना, ऐ फगुनाहट!
हूँ, दंगों से आहत!
ऐ फगुनाहट!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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कैसी फगुनाहट (मेरी आवाज मे You Tube पर इस रचना को सुनें)
https://youtu.be/jV0W5oNbBAU

Thursday, 12 December 2019

हर पात पर

हर पात पर, शायद कोई पैगाम लिख रहा है,
न जाने ये क्या, शाम लिख रहा है!

ज्यूँ, बुलाता है वो, मन को टटोलकर,
यूँ सरेशाम, लौट आते हैं वो पंछी डोलकर,
चहकती है शाम, ज्यूँ बिखरे हों जाम,
बातें तमाम, उनके ही नाम लिख रहा है,
जाने, ये शाम क्या लिख रहा है!

हर पात पर, शायद कोई पैगाम लिख रहा है,
न जाने ये क्या, शाम लिख रहा है!

गुनगुनाते हैं पवन, फूलों से बोलकर,
कैसे मन को बांधे, क्यूँ ना रख दे खोलकर,
बिखेरे हैं लाल रंग, किरणों ने तमाम,
सिंदूरी राज, वो क्या आज लिख रहा है,
जाने, ये शाम क्या लिख रहा है!

हर पात पर, शायद कोई पैगाम लिख रहा है,
न जाने ये क्या, शाम लिख रहा है!

पात-पात रंगे गुलाल, कैसे डोलकर,
हर पात पर लिखी है, बात कुछ बोलकर,
ऐ शाम, कर दे जरा कुछ बातें आम,
क्यूँ चुपचाप, खत गुमनाम लिख रहा है,
जाने, ये शाम क्या लिख रहा है!

हर पात पर, शायद कोई पैगाम लिख रहा है,
न जाने ये क्या, शाम लिख रहा है!

आएंगे वो, पढ़ ना पाएंगे बोलकर,
कुछ कह भी न पाएंगे, वो मुँह खोलकर,
लबों से कह भी दे, तू किस्से तमाम,
बयाँ क्यूँ, आधी ही हकीकत, कर रहा है,
जाने, ये शाम क्या लिख रहा है!

हर पात पर, शायद कोई पैगाम लिख रहा है,
न जाने ये क्या, शाम लिख रहा है!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday, 26 September 2019

हुंकार

गूंज उठी थी ह्यूस्टन, थी अद्भुत सी गर्जन!
चुप-चुप सा, हतप्रभ था नेपथ्य!
क्षितिज के उस पार, विश्व के मंच पर, 
देश ने भरी थी, इक हुंकार?

सुनी थी मैंने, संस्कृति की धड़कनें,
जाना था मैंने, फड़कती है देश की भुजाएं,
गूँजी थी, हमारी इक गूंज से दिशाएँ,
एक व्यग्रता, ले रही थी सांसें!

फाख्ता थे, थर्राए दुश्मनों के होश,
इक भूचाल सा था, फूटा था मन का रोश,
संग ले रहा था, एक प्रण जन-जन,
विनाश करें हम, विश्व आतंक!

आतंक मुक्त हों, विश्व के फलक,
जागे मानवता, आत॔कियों के अन्तः तक,
लक्ष्य था एक, संग हों हम नभ तक,
संकल्प यही, पला अंत तक!

चाह यही, समुन्नत हों प्रगति पथ,
गतिमान रहे, विश्व जन-कल्याण के रथ,
अवसर हों, हाथों में हो इक मशाल,
रंग हो, नभ पे बिखरे गुलाल!

महा-शक्ति था, जैसे नत-मस्तक,
पहचानी थी उसने, नव-भारत की ताकत,
जाना, क्यूँ अग्रणी है विश्व में भारत!
आँखों से भाव, हुए थे व्यक्त!

गूंजी थी ह्यूस्टन, जागे थे सपने,
फलक पर अब, संस्कृति लगी थी उतरने,
हैरान था विश्व, हतप्रभ था नेपथ्य!
निरख कर, भारत का वैभव!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Monday, 18 March 2019

फागुन 2019

दूँ फागुन में डाल, मैं भी थोड़ा सा गुलाल...

ये किस ने बिखेरे, फागुन के रंग,
बहकी सी है फिजा, बहका है अंग-अंग,
गूंज उठी है, हवाओं में तरंग,
मन में क्यूँ रहे, कोई भी मलाल,
दूँ फागुन में डाल, मैं भी थोड़ा सा गुलाल...

खामोश क्यूँ बहे, आज ये पवन,
क्यूँ बेजार सा रहे, तन्हाई में कोई मन,
बेरंग क्यूँ रहे, आज ये गगन,
रह जाए ना कहीं, कोई भी मलाल,
दूँ फागुन में डाल, मैं भी थोड़ा सा गुलाल...

सिमट जाए ना, जिन्दगी के पल,
रंग ले जरा, आ जिन्दगी के साथ चल,
गीत कोई गा, तू जरा मचल,
बच जाए ना, अब कोई भी मलाल,
दूँ फागुन में डाल, मैं भी थोड़ा सा गुलाल...

या टेसूओं के फूल से, रंग मांग लूँ,
या गुलमोहर की डाल से, रंग उधार लूँ,
या पलाश के रंग उतार लूँ,
रंग का रहे, ना कोई भी मलाल,
दूँ फागुन में डाल, मैं भी थोड़ा सा गुलाल...

होली 2019 की शुभकामनाओं सहित
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Thursday, 1 March 2018

होली

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

निभाऊँगा मैं प्रीत रीत, 
तेरा बन जाऊँगा मैं मनमीत मीत,
रंग लाल टेसूओं से लेकर,
संग उलझते गेसूओं को लेकर,
गुलाल गालों पर मलकर,
मनाऊँगा होली, मैं मनमीत मीत....

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

बरजोरी लगाऊं रंग-रंग मै,
तुझको ही लगाऊं रंग अंग-अंग मैं,
तेरे ही चलूंगा संग-संग मैं,
तेरे नाज नखरों के पतंग लेकर,
हवाओं में ही संग लेकर,
सजाऊँगा होली, मैं मनमीत मीत...

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...
 
तेरी मांग मे गुलाल भरकर,
तेरे नैनों में सिन्दूरी ख्याल रखकर,
मन के सारे मलाल धोकर,
सतरंगी राह के सब ख्वाब देकर,
हकीकत के ये रंग लेकर,
खिलाऊँगा होली, मैं मनमीत मीत...

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

तेरी भाल पर बिंदी सजे,
रंगीन आँचल सदा खिलता रहे,
चूड़ी हमेशा बजती रहे,
पायल से रुनझुन संगीत लेकर,
ह्रदय में उठते गीत लेकर,
गाऊँगा होली ही, मैं मनमीत मीत...

रंग जाऊँगा मैं प्रीत पीत, होली में ऐ मनमीत मीत...

Sunday, 25 February 2018

फागुन में तुम याद आए

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

तन सराबोर, हुआ इन रंगों से,
तन्हा दूर रहे, कैसे कोई अपनों से?
भीगे है मन कहाँ, फागुन के इन रंगों से,
तब भीगा वो तेरा स्पर्श, मुझे याद आए.....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

घटाओं पे जब बिखरे है गुलाल,
हवाओं में लहराए है जब ये बाल,
फिजाओं के बहके है जब भी चाल,
तब सिंदूरी वो तेरे भाल, मुझे याद आए....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

नभ पर रंग बिखेरती ये किरणें,
संसृति के आँचल, ये लगती है रंगने,
कलिकाएँ खिलकर लगती हैं विहँसने,
तब चमकते वो तेरे नैन, मुझे याद आए....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

फागुनाहट की जब चले बयार,
रंगों से जब तन को हो जाए प्यार,
घटाओं से जब गुलाल की हो बौछार,
तब आँखें वो तेरी लाल, मुझे याद आए....

क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए.....

Monday, 21 March 2016

विरहन की होली

फिजाओं में हर तरफ धूल सी उड़ती गुलाल,
पर साजन बिन रंगहीन चुनर उस गोरी के।

रास न आई उसको रंग होली की,
मुरझाई ज्यों पतझड़ में डाल़ बिन पत्तों की,
रंगीन अबीर गुलाल लगते फीकी सी,
टूटे हृदय में चुभते शूल सी ये रंग होली की।

वादियों में हर तरफ रंगो की रंगीली बरसात,
लेकिन साजन बिन कोरी चुनर उस विरहन के।

कोहबर में बैठी वो मुरझाई लता सी,
आँसुओं से खेलती वो होली आहत सी,
बाहर कोलाहल अन्दर वो चुप चुप सी,
रंगों के इस मौसम में वो कैसी गुमसुम सी।

कह दे कोई निष्ठुर साजन से जाकर,
बेरंग गोरी उदास बैठी विरहन सी बनकर,
दुनियाँ छोटी सी उसकी लगती उजाड़ साजन बिन,
धानी चुनर रंग लेती वो भी, गर जाती अपने साजन से मिल।