प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
नयनाभिराम सुलोचना थी वो,
शब्दों में मुखरित विवेचना थी वो!
नयनों से वो अन्तर्धान हुई!
पंचतत्व में विलीन होकर, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
बाबू जी की पथगामी थी वो!
नन्द किशोर की अनुगामी थी वो!
उस पथ ही अन्तर्धान हुई!
संगिनी जीवन की होकर, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
अबतक रुण में रमती थी वो!
अबतक सरिता बन बहती थी वो!
अबतक से अन्तर्धान हुई!
पुरु को यादों के घन देकर, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
इक युग का विहान थी वो,
धू-धू जलती लौ थी ज्ञान की वो,
धू-धू लौ में अन्तर्धान हुई!
स्वर लहरी देकर जीवन की, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
करुणामय पुकार थी वो,
करुणा की कोई अवतार थी वो,
सन्नाटों में अन्तर्धान हुई!
ममता की गहरी छाँव देकर, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
अकल्प निर्विकार थी वो,
नवयुग की ज्वलंत विचार थी वो,
ज्वाला में अन्तर्धान हुई!
प्रगति पथ पर आरूढ़ कर, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
अब बेटा ना बुलाएगी वो,
पर याद मुझे हर क्षण आएगी वो!
मुझमें ही अन्तर्धान हुई!
अन्तःमन में विराजित हो, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
इक युग का अवसान हुआ,
पुत्र का कंपित मन श्मशान हुआ,
चुप ही चुप अन्तर्धान हुई!
प्रज्वलित कर ज्ञान की लौ, खामोश हुई माँ!
प्रतिक्षण देती आशीष विदा हुई मेरी माँ!
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माँ स्व. सुलोचना वर्मा (03.02.1939 - 08.02.2018)
अबतक रुण: अरुण, बरुण, तरुण, करुण (4 निज पुत्र)
सरिता: पुत्री
बाबूजी स्व.नन्दकिशोर प्रसाद (1934-2016)
पुरु: पुरुषोत्तम (विशेष पुत्र)-
मुझमें कविता बन जीवित है हमारी माँ