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Sunday, 5 March 2017

मैं सौदागर

मैं खुशियों का व्योपारी, कहते मुझको सौदागर।

बेचता हूँ खुशियों की लड़ियाँ,
चँद पिघलते आँसुओं के बदले में,
बेचता हूँ सुख के अनगिनत पल,
दु:ख के चंद घड़ियों के बदले में।

सौदा खुशियों की करने आया मैं सौदागर।

सौदा मेरा है बस सीधा सरल सा,
सुख के बदले अपने दुख मुझको दे दो,
मोल जोल की भारी गुंजाईश इसमें,
जितना चाहो उतनी खुशियाँ मुझसे लो।

सौगात खुशियों की लेकर आया मैं सौदागर।

खुलती दुकान मेरी चौबीसो घंटे,
सौदा सुख का तुम चाहे जब कर लो,
स्वच्छंद मुस्कान होगी कीमत मेरी,
बदले में मुस्कानों की तुम झोली ले लो।

मैं खुशियों का व्योपारी कहते हैं मुझको सौदागर।

सुख दुख तो इक दूजे के संगी,
लेकिन संग कहाँ कहीं पर ये दिखते हैं,
इक जाता है तो इक आता है,
साथ साथ दोनो इस मन में ही बसते हैं।

सौगात जीवन की लेकर आया हूँ मैं सौदागर।

मन की दीवारों को टटोलकर देखो
सुख के गुलदस्ते अभी तक वहीं टंके हैं,
हृदय के अंदर तुम झाँककर देखो,
सुख का सौदागर तो रमता तेरे ही हृदय है।

ढ़ूंढ़ों तुम अपने हृदय में वही बड़ा है सौदागर।

Saturday, 16 July 2016

फलक पे टंगी खुशियाँ

देखने को तो फलक पे ही टंगी है अाज भी खुशियाँ........

फलक पे ही टंगी थी सारी खुशियाँ,
पल रहा अरमान दामन में टांक लेता मैं भी इनको,
पर दूर हाधों की छुअन से वो कितनी,
लग रही मुझको बस हसरतों की है ये दुनियाँ।

झांकता हूँ मैं अब खुद के ही अंदर,
ढूंढने को अपने अनथक अरमानों की दुनियाँ,
ढूंढ़़ पाता नहीं हूँ पर अपने आप को मैं,
दिखती है बस हसरतों की इक लम्बी सी कारवाँ।

गांठ सी बनने लगी है अरमानों की अब,
कहीं दूर हो चला हूँ रूठे-रूठे अरमानों से अब मैं,
झूठी दिलासा कब तलक दूँ मैं उनको,
बेगानों की बस्ती में अब समझते वो मुझको पराया।

क्या अब भी मुझमें कुछ बचा हूँ शेष मैं,
उस फलक के कनारों से ही अब जान पाऊँगा ये मैं,
कुछ चीज एक मन सी रहती थी अन्दर,
न जाने क्युँ आजकल वो भी हुआ मुझसे बेगाना।

देखने को तो फलक पे ही टंगी है अब भी खुशियाँ........

Tuesday, 12 April 2016

बिखरे सपने

मेरे सपनों की माला में, सजते कुछ ऐसे मोती,
खुशियाँ बिखरती चहुँ ओर, प्रारब्ध इक जैसी होती!

जीवन ऐसे भी धरा पर, बिखरे हैं जिनके सपने,
टूटी हैं लड़ियाँ माला की, बस टीस बची है मन में,
चुन चुनकर मोतियों को, सहेज रखे हैं उसनें,
सपने हसीन लम्हों के, पर उनके जीवन से बेगाने।

प्रारब्ध ही कुछ ऐसा, नियति ही कुछ ऐसी,
खुशियों के असंख्य पल बस हाथों को छूकर गुजरी,
बुनते रहे वो लड़ियाँ ही, मोतियाँ सब दामन से फिसली,
माला उस जीवन की खुद ही टूट-टूट कर बिखरी।

ऎसे भी जीवन जग में, साँसें चँद मिली हैं जिनको,
कैसे होते हैं सुख के पल, झलक भी मिल सकी न उनको,
उनके भी तो जीवन थे, फिर जन्म मिली क्युँ उनको?
किन कर्मों की सजा, उस विधाता नें दी है उनको।

मेरे सपनों की माला में सजते कुछ ऐसे ही मोती,
सपने पूरे कायनात की सजती बस इक जैसी,
हसते खेलते सभी जीवन में, कोलाहल क्रंदन ये कैसी?
खुशियाँ बिखरती धरा पर, प्रारब्ध सब की इक जैसी!

Sunday, 10 April 2016

उम्र के साथी

आ गई अब उम्र वो, तलाशता हूँ जिन्दगी को,
उम्र की इस दहलीज पे, साथ मेरे कोई तो हो।

कभी मगन हो लिए हम, खुद अपने ही आप में,
फिर कभी तलाशता हूँ, खुद में अपने आप को।

कहते हैं जिन्हे अपना हम, दिखते हैं वो दूर से,
पास अपनी इक जिन्दगी, क्युँ रहें हम मायूश से।

जिन्दगी की प्यारी सी धुन, हर घड़ी बजती रहे,
साए सी तुम संग-संग रहो, जिन्दगी चलती रहे।

तन्हा हैं जो इस सफर में, हम उनकी जिन्दगी बनें,
कुछ लम्हें जिन्दगीे, संग उनके भी हम गुजार लें।

खिल-खिलाएगी ये जिन्दगी, जहाँ तेरे कदम पड़े,
तलाशेंगी ये तुमको खुशी, उठकर आप कहाँ चले।

उम्र गुजर जाएगी ये, जिन्दगी के आस-पास ही,
साथी तेरे कहलाएंगे ये, इस जिन्दगी के बाद भी।

Thursday, 10 March 2016

दो तीरों के बीच

नदी के तीरे खड़ा, पर ढ़ूंढ़ता किनारा,
कैसी है यह दुविधा, कैसी जीवनधारा,
दो तीरों के बीच, भँवर सा मन बावरा,
डगमग जीवन की नैया ढ़ूंढ़ता सहारा।

दो तीर जीवन के, सुख-दु:ख का मेला,
पल खुशियों के कम, लेकिन अलबेला,
किस दुविधा में तू, क्युँ तू यहाँ अकेला,
ढ़ूंढ़ ले अपनी खुशियाँ,भूल जा झमेला।

तीर किनारे नाव कई, दूर नहीं तेरा गाँव,
तू चुन अपनी नाव, देख फिसले न पाँव,
राह कठिन थोड़ी सी,संयम रख ले ठाँव,
रस्ते कट ही जाएँगे, तू पा जाएगा गाँव।

Sunday, 21 February 2016

खुशियों के ढ़ेह

खुशियों के ये पल अन-गिनत इस जीवन में,
बार बार उठती ढ़ेह सी आती जाती जीवन मे,
इस पल को चुन चुन कर दामन मे हम भर ले,
हम-तुम जी-भर खुलकर इस पल मिल ले।

बस झणिक पल दो पल की हैं ये खुशियाँ,
लहर-लहर ढ़ेह की बस मिटने को बनती यहाँ,
इस ढ़ेह सी क्या जाने हम कहाँ और तुम कहाँ,
कुछ कह सुन लें पल-भर साथ थोड़ा बह लें।

उल्लास के ये दो पल हैं जीवन की निधियाँ,
करुणा की नन्हीं बूँदों सी पलती हैं खुशियाँ यहाँ,
पल पल जीवन बीतता तू इस पल जी ले यहाँ,
इक दिन मुरझाना है इस पल तो खिल लें यहाँ।

Wednesday, 17 February 2016

गौरैय्या तू चुप क्युँ?

गौरैय्या रे तू आज चुप क्युँ,
मौन तोड़ कुछ कह दे तू,
क्या हुआ जो रूठ गया वो,
संगा संबंधी था छोड़ गया वो।

छोटी सी तो दुनिया है तेरी,
सुख और दुख दोनो तेरे साथी,
जीवन संगी के संग प्रीत लगा तू,
बहाने खुशी के ढूंढ़ नया तू।

तिनके नए पुराने तू चुन ले,
बसेरा सुन्दर सा तू बुन ले,
चीं चीं वाणी मे तू गाता जा,
नए दोस्त संबंधी तू बनाता जा।

गुलशन मंद तेरी वाणी बिन,
झुरमुट उदास तेरी चीं चीं बिन,
मेरी मन में तू इक आस जगा,
गौरैय्या तू चुप क्युँ गीत कोई गा।

Thursday, 28 January 2016

खुशियों के क्षण

छंद बिखरे क्षणों के अब बन गए है गीत मेरे!

बिखर गई हैं आज हर तरफ खुशियाँ यहाँ,
सिमट गए हैं दामन में आज ये दोनो जहाँ,
खोल दिए बंद कलियों ने आज घूँघट यहाँ,
खिल गए हैं अब मस्त फूलों के चेहरे यहाँ।

गुजरकर फासलों से अब मिल गई मंजिल मेरी।

शूल यादों के सभी फूल बनकर खिल गए,
सज गई महफिलें हम और तुम मिल गए,
थाम लो मुझको यारों आज वश में मै नही,
मस्त आँखों से सर्द जाम पी है मैनें अभी।

लम्हों के इन कारवाँ में गुजरेगी अब जिन्दगी मेरी।