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Saturday, 26 October 2019

शब्द-पंख

शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे,
उड़ आते पास तेरे, लग जाते ये अंग तुम्हारे!

तरंग सी कहीं उठती, कोई कल्पना,
लहर सी बन जाती, नवीन कोई रचना,
शब्द, भर लेते ऊँचे कई उड़ान,
तकते नभ से, नैन तुम्हारे, पंख पसारे,
उड़ आते, फिर पास तेरे!

शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!

सज उठती, मेरी कोरी सी कल्पना,
रचनाओं से अलग, दिखती मेरी रचना,
असाधारण से होते, सारे वर्णन,
गर नैनों के तेरे, पा लेते ये निमंत्रण,
उड़ आते, फिर पास तेरे!

शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!

पुल, तारीफों के, बंध जाते नभ तक,
बातें मेरी, शब्दों में ढ़ल, जाते तुझ तक,
रोकती वो राहें, थाम कर बाहें,
सुनहरे पंखों वाले, कुछ शब्द हमारे,
उड़ आते, फिर पास तेरे!

शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!
उड़ आते पास तेरे, लग जाते ये अंग तुम्हारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Friday, 29 January 2016

नेह निमंत्रण

हे प्रिय, तुम मेरे हृदय का नेह निमंत्रण ले लो!

मेरा हृदय ले लो तुम प्रीत मुझे दे दो,
स्वप्नमय नैनों में मुग्ध छवि सी बसो,
स्मृति पलकों के चिर सुख तुम बनो।

हे प्रिय, तुम मेरा प्रीत निवेदन सुन लो!

मैं पाँवो की तेरे लय गति बन जाऊँ,
प्राणों मे तुझको भर गीत बन गाऊँ
तेरी चंचल नैनों का नींद बन जाऊँ।

हे प्रिय, तुम नैन किरण आमंत्रण सुन लो!

तूम जीवन की नित उषा सम उतरो,
मेरी परछाई बन रजनी सम निखरो,
चिर जागृति की तू स्वप्न सम सँवरो।

हे प्रिय, तुम अधरों का गीत तो सुन लो!

मैं सृष्टि प्रलय तलक तेरा संग निभाऊँ,
तेरी अधरों का अमृत पीकर इठलाऊँ,
तुझ संग सृष्टि वीणा का राग दुहराऊँ।

हे प्रिय, मेरे भावुक हृदय का नेह निमंत्रण स्वीकारो!

Tuesday, 19 January 2016

निशा स्नेह निमंत्रण

निशा रजनी फिर से खिल आई,
कोटि दीप जल करती अगुवाई,
कीट-पतंगें उड़ती भर तरुणाई।

खिल उठेे मुखमंडल रात्रिचर के
अदभुत छटा छाई नभमंडल पे,
गूंज उठी रात्रि  स्वर कंपन से।

झिंगुर, शलभ, कीट, पतंगे  गाते,
विविध नृत्य कलाओं से मदमाते,
आहुति दे अपनी उत्सव मनाते।

नववधु अातुर निशा निमंत्रण को,
सप्तश्रृंगार कर बैठी आमंत्रण को,
हृदय धड़कते नव गीत गाने को ।

स्नेह की बूँद निशा ने भी बरसाए,
मखमली शीत की चादर बिछाए,
 स्नेहिल मदिरा मकरंद सी मदमाए।