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Monday, 21 March 2016

अधूरे सपने

ठहरे से जीवन में छोटी सी खुशी के पल ये अधूरे सपने.....!

रात के अंधेरे रंगीन सपनों से पटे हुए,
दिन के उजाले संकलित भविष्य के विराट मार्ग।

दोनो तो सपने ही हैं गर मानों तो,
एक बंद आँखों से तो दूसरी खुली आँख,
अधूरी आंकांक्षाओं के बीज लिए ये रात दिन के मार्ग।

बस पनपेगा कब ये बीज, मन सोचता,
समझौते पर विवश वो, रात दिन एक करता,
बची रह जाती फिर भी जीवन में सपनों की कुछ शाम ।

ठहरे से जीवन में छोटी सी खुशी के पल ये अधूरे सपने.....!

Sunday, 20 March 2016

सहमी सहमी सी खुशी

बरसों बीते, एक दिन खुशी को अचानक मैने भी देखा था राह में,
शक्ल कुछ भूली-भूली, कुछ जानी-पहचानी सी लगी थी उसकी,
दिमाग की तन्तुओं पर जोर डाला, तो पहचान मिली उस खुशी की,
बदहवास, उड-उड़े़े होश, माथे पे पसीने की बूंदे थी छलकी सी।

उदास गमगीन अंधेरों के साए में लिपटी, गुमसुम सी लगती थी वो,
इन्सानों की बस्ती से दूर, कहीं वीहट में शायद गुम हो चुकी थी वो,
खुद अपने घर का पता ढ़ूढ़ने, शायद जंगल से निकली थी वो,
नजरें पलभर मुझसे टकराते ही, कहीं कोने मे छुपने सी लगी थी वो।

सहमी-सहमी सी आवाज उसकी, बिखरे-बिखरे से थे अंदाज,
उलझे-उलझे लट चेहरे पे लटकी, जैसे झूलती हुई वटवृक्ष के डाल,
कांति गुम थी उसके चेहरे से, कोई अपना जैसे बिछड़ा था उससे,
या फिर किसी अपनों नें ही, दुखाया था दिल उस विरहन के जैसे।

इंसानों की बस्ती में वापस, जाने से भी वो घबराती थी शायद,
पल पल बदलते इंसानों के फितरत से, आहत थी वो भी शायद,
आवाज बंद हो चुकी थी उसकी, कुछ कह भी नही पाती वो शायद,
टूटकर बिखरी थी वो भी, छली गई थी इन्सानों से वो भी शायद।

व्यथा देख उसकी मैं, स्नेहपूर्वक विनती कर अपने घर ले आया,
क्षण भर को आँखे भर आई उसकी, पर अगले ही क्षण यह कैसी माया,
अपनों मे से ही किसी की मुँह से "ये कौन है?" का स्वर निकल आया,
विरहन खुशी टूट चुकी थी तब, जंगल में ही खुश थी वो शायद....!

Saturday, 5 March 2016

खुशियों का सौदागर

मैं खुशियों का व्योपारी, कहते मुझको सौदागर।

बेचता हूँ खुशियों की लड़ियाँ,
चँद पिघलते आँसुओं के बदले में,
बेचता हूँ सुख के अनगिनत पल,
दु:ख के चंद घड़ियों के बदले में।

सौदा खुशियों की करने आया मैं सौदागर।

सौदा मेरा है बस सीधा सरल सा,
सुख के बदले अपने दुख मुझको दे दो,
मोल जोल की भारी गुंजाईश इसमें,
जितना चाहो उतनी खुशियाँ मुझसे लो।

सौगात खुशियों की लेकर आया मैं सौदागर।

खुलती दुकान मेरी चौबीसो घंटे,
सौदा सुख का तुम चाहे जब कर लो,
स्वच्छंद मुस्कान होगी कीमत मेरी,
बदले में मुस्कानों की तुम झोली ले लो।

मैं खुशियों का व्योपारी कहते हैं मुझको सौदागर।

सुख दुख तो इक दूजे के संगी,
लेकिन संग कहाँ कहीं पर ये दिखते हैं,
इक जाता है तो इक आता है,
साथ साथ दोनो इस मन में ही बसते हैं।

सौगात जीवन की लेकर आया हूँ मैं सौदागर।

मन की दीवारों को टटोलकर देखो
सुख के गुलदस्ते अभी तक वहीं टंके हैं,
हृदय के अंदर तुम झाँककर देखो,
सुख का सौदागर तो रमता तेरे ही हृदय है।

ढ़ूंढ़ों तुम अपने हृदय में वही बड़ा है सौदागर।

Thursday, 3 March 2016

अकस्मात् ही

कुछ मन की खुशी, अकस्मात् मिली यूँ,
रेत भीग गई हो कहीं, रेगिस्तान में  ज्यूँ,
जैसे जून में जमकर बरसी है बारिश यूँ,
कौंध गया है मन जैसे ठंढ़ी फुहार में यूँ।

हठात् मिल जाता है जब मनचाहा कोई,
खुशी मिलन की तब हो जाती है दोगुनी,
अकस्मात् बिछड़े जब, मिल जाते कहीं,
जीने की चाहत तब, बढ़ जाती और भी।

बिजली कौंधती बारिश मे अकस्मात् ही,
बूंद बनती है मोती सीप में अकस्मात् ही,
आसमान मे छाते हैं बादल अकस्मात् ही,
दो दिल मिलते हैं जीवन में अकस्मात ही।

पल पल की ये खुशियाँ जीवन की निधि,
हर पल जीवन जीने की देती है ये शक्ति,
अकस्मात् गले किसी को लगा लो अभी,
मंत्र शायद खुश रहने का जीवन में यही।




Sunday, 21 February 2016

खुशियों के ढ़ेह

खुशियों के ये पल अन-गिनत इस जीवन में,
बार बार उठती ढ़ेह सी आती जाती जीवन मे,
इस पल को चुन चुन कर दामन मे हम भर ले,
हम-तुम जी-भर खुलकर इस पल मिल ले।

बस झणिक पल दो पल की हैं ये खुशियाँ,
लहर-लहर ढ़ेह की बस मिटने को बनती यहाँ,
इस ढ़ेह सी क्या जाने हम कहाँ और तुम कहाँ,
कुछ कह सुन लें पल-भर साथ थोड़ा बह लें।

उल्लास के ये दो पल हैं जीवन की निधियाँ,
करुणा की नन्हीं बूँदों सी पलती हैं खुशियाँ यहाँ,
पल पल जीवन बीतता तू इस पल जी ले यहाँ,
इक दिन मुरझाना है इस पल तो खिल लें यहाँ।

Wednesday, 17 February 2016

गौरैय्या तू चुप क्युँ?

गौरैय्या रे तू आज चुप क्युँ,
मौन तोड़ कुछ कह दे तू,
क्या हुआ जो रूठ गया वो,
संगा संबंधी था छोड़ गया वो।

छोटी सी तो दुनिया है तेरी,
सुख और दुख दोनो तेरे साथी,
जीवन संगी के संग प्रीत लगा तू,
बहाने खुशी के ढूंढ़ नया तू।

तिनके नए पुराने तू चुन ले,
बसेरा सुन्दर सा तू बुन ले,
चीं चीं वाणी मे तू गाता जा,
नए दोस्त संबंधी तू बनाता जा।

गुलशन मंद तेरी वाणी बिन,
झुरमुट उदास तेरी चीं चीं बिन,
मेरी मन में तू इक आस जगा,
गौरैय्या तू चुप क्युँ गीत कोई गा।

Thursday, 28 January 2016

खुशियों के क्षण

छंद बिखरे क्षणों के अब बन गए है गीत मेरे!

बिखर गई हैं आज हर तरफ खुशियाँ यहाँ,
सिमट गए हैं दामन में आज ये दोनो जहाँ,
खोल दिए बंद कलियों ने आज घूँघट यहाँ,
खिल गए हैं अब मस्त फूलों के चेहरे यहाँ।

गुजरकर फासलों से अब मिल गई मंजिल मेरी।

शूल यादों के सभी फूल बनकर खिल गए,
सज गई महफिलें हम और तुम मिल गए,
थाम लो मुझको यारों आज वश में मै नही,
मस्त आँखों से सर्द जाम पी है मैनें अभी।

लम्हों के इन कारवाँ में गुजरेगी अब जिन्दगी मेरी।