Wednesday, 13 September 2017

दूभर जीवन

उस छोटी सी चिड़ियाँ का जीवन कितना दूभर?
चातुर नजरों से देखती इधर-उधर,
मन ही मन हो आतुर सोचती करती फिकर....

मीलों होगे आज फिर उड़ने,
अधूरे काम बहुत से पूरे होंगे करने,
आबो-दाना है कहाँ न जाने?
मिटेगी भूख न जाने किस दाने से?
चैन की नींद! रही अब आने से!

दूर डाल पे बैठी छोटी सी चिड़ियाँ सोंचती!

फिर घोंसले की करती फिकर!
न जाने किस डाल सुरक्षित रह पाऊँगी?
कोटरों में हैं बसते आस्तीन के साँप,
मैं तिनके कहाँ सजाऊँगी?
क्रूर बहेलियों की दुष्ट नजर से,
दूर कैसे रह पाऊँगी?

उस छोटी सी चिड़ियाँ को भविष्य का डर?

आनेवाली बारिश की फिकर!
आँधियों मे अपनों से बिछड़ने का डर!
डाली टूट गई थी पिछली बार,
उजड़ चुका था उसका छोटा सा संसार,
सपने हो चुके थे तितर बितर,
"अन्डे कैसे बचाऊँगी?" अब यही फिकर!

उस छोटी सी चिड़ियाँ का जीवन कितना दूभर?
चातुर नजरों से देखती इधर-उधर,
मन ही मन हो आतुर सोचती करती फिकर....

2 comments:

  1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी ------ नन्ही चिड़िया का मानवीकरण कर --उसके नन्हे से कोमल मन की भावनाओं को बहुत ही सुंदर . सुबोध शब्दों में पिरो आपने रचना को बहुत ही मोहक रूप दे दिया है | नितांत नया विषय और अछूते भाव | इन्सान की स्वार्थ लोलुपता ने नन्हे पक्षियों को कितनी चिंता में डाल दिया है -? सचमुच उनका जीवन दूभर तो होगा ही |

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    1. आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्न हूँ आदरणीया रेणु जी। शुभकामनाएं शुक्रिया ।

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