Saturday, 23 September 2017

सैकत

असंख्य यादों के रंगीन सैकत ले आई ये तन्हाई,
नैनों से छलके है नीर, उफ! हृदय ये आह से भर आई!

कोमल थे कितने, जीवन्त से वो पल,
ज्यूँ अभ्र पर बिखरते हुए ये रेशमी बादल,
झील में खिलते हुए ये सुंदर कमल,
डाली पे झूलते हुए ये नव दल,
मगर, अब ये सारे न जाने क्यूँ इतने गए हैं बदल?

उड़ते है हर तरफ ये बन के यादों के सैकत!
ज्यूँ वो पल, यहीं कहीं रहा हो ढल!
मुरझाते हों जैसे झील में कमल,
सूखते हो डाल पे वो कोमल से दल,
हृदय कह रहा धड़क, चल आ तू कहीं और चल!

उड़ रही हर दिशा में, रंगीन से असंख्य सैकत,
बिंधते हृदय को, यादों के ये तीक्ष्ण सैकत,
नैनों में आ धँसे, कुछ हठीले से ये सैकत,
अभ्र पर छा चुके है नुकीले से ये सैकत,
जाऊँ किधर! ऐ दिल आता नही  कुछ भी नजर?

असंख्य यादों के रंगीन सैकत ले आई ये तन्हाई,
नैनों से छलके है नीर, उफ! हृदय ये आह से भर आई!

4 comments:

  1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- यादों से उलझते भीगे मन का करुण गान है आपकी रचना | मनमोहक कोमल शब्दावली और अनुरागी भाव रचना में चार चाँद लगा रहे हैं | ------------
    उड़ते है हर तरफ ये बन के यादों के सैकत!
    ज्यूँ वो पल, यहीं कहीं रहा हो ढल!
    मुरझाते हों जैसे झील में कमल,
    सूखते हो डाल पे वो कोमल से दल,
    हृदय कह रहा धड़क, चल आ तू कहीं और चल!------

    क्या खूब लिखा आपने | इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको |
    सबसे बड़ी बात कि ' पहली बार सैफत ' शब्द से परिचय हुआ जिसके लिए विशेष आभार !!!!!

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    1. आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्न हूँ आदरणीया रेणु जी। शुभकामनाएं शुक्रिया ।

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    2. आदरणीय पुरुषोत्तम जी , कुछ टिप्पणियाँ मेरे गूगल प्लस पर सुरक्षित थी सो मैंने इन्हें फिर से उन्ही रचनाओं तक पहुंचा दिया | आपकी कई रचनाओं पर टिप्पणियाँ थी वहां |

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