है जीवन वही, जो मरण के क्षण को जीत ले...
झंकृत शब्दों से मौन को चीर दे,
ठहरे पलों को अशांत सागर का नीर दे,
टूटे मन को शांति का क्षीर दे,
है जीवन वही......
अचम्भित हूं मैं मौन जीवन पे,
कब ठहरा है जीवन मौन की प्राचीर पे,
मृत्यु के पल आते है मौन पे,
है जीवन वही......
मरण दाह है, लौ जीवन की ले,
ज्वलंत पलों से पल जीवन के छीन ले,
यूं जीते जी क्यूँ दाह में जले,
है जीवन वही......
इक गूंज गुंजित है ब्रम्हाण्ड में,
ओम् अहम् वही गुंजित है हर सांस में,
गूंज वही गूंजित कर मौन में,
है जीवन वही......
कोलाहल हो जब ये दीप जले,
हो किलकारी जब भी कोई फूल खिले,
मुखरित मन के संवाद चले,
है जीवन वही......
है जीवन वही, जो मरण के क्षण को जीत ले...
झंकृत शब्दों से मौन को चीर दे,
ठहरे पलों को अशांत सागर का नीर दे,
टूटे मन को शांति का क्षीर दे,
है जीवन वही......
अचम्भित हूं मैं मौन जीवन पे,
कब ठहरा है जीवन मौन की प्राचीर पे,
मृत्यु के पल आते है मौन पे,
है जीवन वही......
मरण दाह है, लौ जीवन की ले,
ज्वलंत पलों से पल जीवन के छीन ले,
यूं जीते जी क्यूँ दाह में जले,
है जीवन वही......
इक गूंज गुंजित है ब्रम्हाण्ड में,
ओम् अहम् वही गुंजित है हर सांस में,
गूंज वही गूंजित कर मौन में,
है जीवन वही......
कोलाहल हो जब ये दीप जले,
हो किलकारी जब भी कोई फूल खिले,
मुखरित मन के संवाद चले,
है जीवन वही......
है जीवन वही, जो मरण के क्षण को जीत ले...
बहुत सुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ज्योति जी। शुभ प्रभात ।
Deleteजीवन का उद्देश्य बड़ी खूबसूरती से समझाया है आपने ...,बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय मीना जी।
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