Monday, 17 June 2019

बरसे न बदरा

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

बरसों हुए, अब-तक न भीगे!
रंग बारिशों के, है कैसे ये हमने न देखे?
कहते है, वो मेघ होते हैं पागल,
झमा-झम बरस जाएँ, न जाने ये किस पल!
पर भरोसे के, कब होते हैं बादल!
चल कहीं और चल....

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

आसमां पर, मेघों का छाना!
कल्पना है कोरी, या है ये कोई फ़साना!
सुना था, इठलाते हैं वो बादल,
यूँ कभी झूमकर, यूँ ही कहीं जाते हैं चल!
छोड़ कर पीछे, सूना सा आँचल!
चल कहीं और चल....

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

हैं अधूरे से, अपने सारे अरमाँ,
चल, ले आएं हम इक नया सा आसमां,
लहराना तुम, भींगा सा आँचल,
जरा भर लाना, नैनों में तुम, वो ही काजल!
इससे पहले, कि बिखर जाएँ हम!
चल कहीं और चल....

बरसते नहीं, यहाँ अब वो बादल,
चल कहीं और चल....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 18, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-06-2019) को "बरसे न बदरा" (चर्चा अंक- 3370) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपके मंच की शोभा बनाने हेतु आभारी हूँ आदरणीय ।

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  3. लहराना तुम, भींगा सा आँचल, जरा भर लाना, नैनों में तुम, वो ही काजल! इससे पहले, कि बिखर जाएँ हम! चल कहीं और चल...बहुत खूब लिखा सिन्‍हा साहब

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    1. प्रतिक्रिया और उत्साहवर्धन हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।

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  4. आसमां पर, मेघों का छाना!
    कल्पना है कोरी, या है ये कोई फ़साना!
    सुना था, इठलाते हैं वो बादल,
    यूँ कभी झूमकर, यूँ ही कहीं जाते हैं चल!
    छोड़ कर पीछे, सूना सा आँचल!
    चल कहीं और चल....बेहतरीन सृजन आदरणीय
    सादर

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    1. आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीया अनीता जी।

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