आदरणीया डा. वर्षा जी के निधन (निधन तिथि 03.05.2021), की खबर पाकर स्तब्ध हूँ। श्रद्धांजलि के रूप में पेश है, उनकी ही लिखी कुछ पंक्तियों से प्रभावित, एक कविता, मेरी ओर से एक श्रद्धासुमन-
जब भी खिल आएंगी, कहकशाँ,
वो याद आएंगे, बारहां!
बारिशों से, नज्म उनके, बरस पड़ेंगे,
दरख्तों के ये जंगल, उनकी ही गजल कहेंगे,
टपकती बूँदें, घुँघरुओं सी बज उठेंगी,
सुनाएंगी, कुछ नज्म उनके,
उनकी ही कहानियाँ!
वो याद आएंगे, बारहां!
इक नदी, बहती थी अंदर ही अंदर,
या छुपा कर उसने भी रखा था, इक समंदर,
वो ही प्रवाह, बन उठी थी लहर-लहर,
भिगोएंगी, रह-रहकर सदा,
उनकी ही रवानियाँ!
वो याद आएंगे, बारहां!
कहकशाँ, पूछेंगी चांदनी का पता,
जब कभी भूल जाएगी, वो अंधेरों में रास्ता,
उनकी चाँदनी मैं भी, रख लेता चुरा,
ढूढ़ेंगी, अब मेरी ये निगाहें,
उनकी ही निशांनियाँ!
जब भी खिल आएंगी, कहकशाँ,
वो याद आएंगे, बारहां!
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कई बार उनकी रचनाओं और मेरी ब्लॉग पर उनकी प्रतिकियाओं ने मुझे प्रेरित किया है।
उद्धृत है चर्चामंच पर उनके लिए आदरणीया कामिनी जी द्वारा लिखी गई एक प्रतिक्रिया का अंश जो उनके बारे में सबकुछ कह जाती है: - असाधारण लेखिका, कवयित्री, शायरा एवं कला-प्रेरिका वर्षा जी नहीं रहीं? क्या यह विदुषी अब केवल स्मृति-शेष है?
उनकी ब्लाॅग के लिंक्स-
https://varshasingh1.blogspot.com/
https://ghazalyatra.blogspot.com/
https://vichar-varsha.blogspot.com/
पेश है, स्व. वर्षा जी की लिखी, कुछ पंक्तियाँ:
एक नदी बाहर बहती है, एक नदी है भीतर
बाहर दुनिया पल दो पल की, एक सदी है भीतर
साथ गया कब कौन किसी के, रिश्तों की माया है
बाहर आंखें पानी-पानी, आग दबी है भीतर
एक लय है ख़ुशी, गुनगुनाओ ज़रा
मुझको मुझसे कभी तो चुराओ ज़रा
कौन जाने कहां सांस थम कर कहे -
"अलविदा !" दोस्तो, मुस्कुराओ जरा..
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उनके बारे में ज्यादा व्यक्तिगत जानकारी तो नहीं है, पर रचनाओं और उनकी लेखन कलाओं के माध्यम से उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी है मुझ पर। उनकी सशक्त रचनाएँ ब्लॉग जगत में एक मील के पत्थर की तरह अंकित रहेंगी।
उनकी असामयिक मृत्यु ब्लॉग जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
ईश्वर से उनकी दिवंगत आत्मा हेतु शांति की प्रार्थना करता हूँ।
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- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपने जैसे मेरे ही मन की बात को अपने काव्य में ढालकर कह दिया है आदरणीय पुरुषोत्तम जी। समुचित श्रद्धांजलि दी है आपने उन्हें। मेरा नमन स्वीकार करें।
ReplyDeleteआदरणीय जितेन्द्र जी, शुक्रवार हूँ। आप ही की ब्लॉग से सर्वप्रथम इसकी सूचना मिली मुझे।
Deleteआपकी लेखनी व सरोकार को नमन
सुनकर निःशब्द हूं अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि वर्षा जी सदा हमारे दिल में रहेंगी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteजी, बिल्कुल। ब्लॉग जगत उनको हमेशा याद करेगा।
Deleteनमन।🙏🌻
ReplyDeleteआभार
Deleteउनकी प्रतिक्रियाएं हमेशा बेहतर करने का संबल होती थीं। मन दुख से भर गया है...ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
ReplyDeleteजी संदीप जी, बिल्कुल।
Deleteसिन्हा साहब ...संवेदना के चरम पर लिखे गए इन शब्दों से वर्षा जी को श्रद्धांजलि..ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे...
ReplyDeleteबिल्कुल, आदरणीय अलकनंदा जी।
Deleteकहकशाँ, पूछेंगी चांदनी का पता,
ReplyDeleteजब कभी भूल जाएगी, वो अंधेरों में रास्ता,
उनकी चाँदनी मैं भी, रख लेता चुरा,
ढूढ़ेंगी, अब मेरी ये निगाहें,
उनकी ही निशांनियाँ!
जब भी खिल आएंगी, कहकशाँ,
वो याद आएंगे, बारहां!
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सच बहुत याद आएंगीं ।।
आपके भाव पुष्प से दी श्रद्धांजलि में एक पुष्प मेरा भी ।🙏🙏🙏
अवश्य आदरणीया संगीता जी।
Deleteमैंने तो उनकी रचनाएं कभी नहीं पढ़ा पर आपने जो उनका व्यक्तित्व परिचय दिया है...यह जानकर मैं भी स्तब्ध हूँ। आपने उन्हें मेरे विचारों में एक नया जन्म दिया है....मैं उनकी रचनाएं अवश्य पढूंगा।
ReplyDeleteउनको मेरी भी भावपूर्ण श्रध्दांजलि है...मेरी कुछ पंक्तियों के साथ....
"...
हर कोई बीत जाए
ये मुम़किन नहीं
उनका देह नहीं तो
नाम ज़िंदा रहेगा
..."
प्रकाश जी, अवश्य पढिए उन्हे ....
Deleteशब्द खो गये हैं और कुछ भी कहते नहीं बन रहा है । अवाक!
ReplyDeleteजी, समय और परिस्थिति ही कुछ ऐसी है।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (5 -5-21) को "शिव कहाँ जो जीत लूँगा मृत्यु को पी कर ज़हर "(चर्चा अंक 4057) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
🙏
Deleteवर्षा जी का जाना ब्लॉग जगत के लिये अपूर्णीय क्षति है। उनका स्नेह अब सिर्फ याद ही आएगा।
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि।
🙏
Deleteअत्यंत दुखद है यह
Deleteविश्वास नहीं होता है कि वो अब हमारे बीच नहीं हैं
ReplyDeleteमन भर आया है, अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि
पर यही सत्य है आदरणीया। ।।
Deleteबहुत ही भावभीनी श्रद्धांजलि दी है आपने पुरुषोत्तम जी, मन भर आया,उनकी गजल भी अन्तर्मन को छू गई । हम सभी की मनोदशा भी कुछ ऐसी ही है वर्षा जी को अश्रुपूर्ण नेत्रों से अलविदा ।।🌹🌹🙏🙏।।
ReplyDeleteजी, धन्यवाद जिज्ञासा जी।
Delete
ReplyDeleteजब भी खिल आएंगी, कहकशाँ,
वो याद आएंगे, बारहां!
बारिशों से, नज्म उनके, बरस पड़ेंगे,
दरख्तों के ये जंगल, उनकी ही गजल कहेंगे,
टपकती बूँदें, घुँघरुओं सी बज उठेंगी,
सुनाएंगी, कुछ नज्म उनके,
उनकी ही कहानियाँ!//////
आदरणीय पुरुषोत्तम जी, बिलखते शब्द व्याकुल मन का अनकहा दर्द समेटे हुए हैं। दिवंगत वर्षा जी की ग़ज़ल यात्रा को समर्पित इस रचना ने एक बार फिर आँखें नम कर दीं। शोकाकुल
मन विश्वास नहीं कर पा रहा कि वर्षा जी नहीं रही। उनका खूबसूरत, तेजस्वी मुखड़ा आँखों से ओझल नहीं हो पा रहा। उनके ब्लॉग पर जाते ही सुंदर छवि चित्र बरबस सम्मोहन में मेंबांध लेता था।
उनसे ज्यादा परिचय ना होने पर भी भी स्नेहस्वरूप उनके शुभकामना संदेश फेसबुक पर यदा- कदा मिलते रहते थे। एक दो बार वहाँ अनौपचारिक संवाद भी हुआ जो मेरे लिए अविस्मरणीय है। आभासी संसार भी एक परिवार जैसा ही लगता है अब तो। यहाँ भी कोई अनहोनी परिवार जैसे ही दर्द देती है। वर्षा जी की रचनाएँ आँखें नम करती रहेंगी। उनका भावपूर्ण लेखन सदैव पाठकों को रिझाता रहेगा। शरद जी के लिए बहुत दर्द का अनुभव हो रहा है। माँ और बड़ी बहन को एक साथ खोना कितना हृदय विदारक रहा होगा ये सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बुंदेलखंड ने अपनी इस मेधावी, विदुषी बेटी को खोकर ,संस्कारों और समाज के प्रति समर्पित एक विलक्षण व्यक्तित्व गँवा दिया है।
नमन वर्षा जी।
आप हमेशा याद आयेंगी। आपकी पुण्य स्मृतियों को विनम्र सादर नमन।
शरद जी के साथ मेरी संवेदनाएं। साथ में उनके स्वास्थ्य के लिए दुआएं, वे सकुशल रहे और परिवार, माँ बहन की विरासत सहेजें, ईश्वर उन्हें नियति का ये प्रचंड प्रहार सहने की शक्ति दे। 🙏🙏😔
आपकी भावपूर्ण रचना के लिए साधुवाद 🙏🙏
🙏
Deleteवर्षा जी के लिए कुछ शब्द मेरे भी------
ReplyDelete********
लौट आओ दोस्त
हुई सूनी दिल की महफ़िलें,
नज़्म है उदास
थमे ग़ज़लों के सिलसिले,
अंतस में घोर सन्नाटे हैं।
सजल नैनों में ज्वार - भाटे हैं
बिछड़े जो इस तरह गए
ना जाने किस राह चले?
कौन देगा शरद को
स्नेह की थपकियाँ
किसके गले लग बहन की।
थम पाएंगी सिसकियां
किस बस्ती जा किया बसेरा
हुए क्यों इतने फासले!!
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏😔😔
अप्रतिम। आपकी दुआ उन तक जरूर पहुँच रही होगी।
Deleteआदरणीय पुरुषोत्तम जी,
ReplyDeleteआपने और रेणु जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से हर उस संवेदनशील आत्मा की बात कह दी जो वर्षा जी के लिए या उनके जैसे ही अपने बिछड़े किसी साथी के लिए दर्द महसूस कर रहे है। भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करना भी हर किसी के बस की बात नहीं होती।
पुरुषोत्तम जी आपकी कविताओं की मुरीद तो मैं हमेशा से रही हूँ ,आपकी कविताओं में अनकही भावनाओं का शैलाब होता है। ये सच है कि -ये ब्लॉग जगत भी हमारा एक परिवार हो गया है जहाँ हम सबकी ख़ुशी में खुश हो लेते है और गम में दुखी। अब ये दिखावा एक छलावा भी हो तो भी क्या ?कम से कम हम थोड़ी देर के लिए ही सही किसी से जुड़ तो जाते हैं। अगर इस रिश्तें की पाकीज़गी बनाये रखा जाये तो इससे पवित्र कोई रिश्ता नहीं जहाँ सिर्फ ज्ञान और भावनाओं का आदान प्रदान होता है। बाकी स्वार्थ तो किसी भी रिश्तें को नापाक कर देता है। वर्षा जी,यकीनन एक सदविचारों वाली आत्मा होगी तभी तो जाते-जाते भी हमें ये सीख दे गई ,सादर नमन आपको
🙏🙏🙏🙏
Deleteआदरणीय वर्षा जी से जब से ब्लॉग शुरू किया तभी से सम्बन्ध रहा है, शायद २००६-२००९-२००११ पर कई बार समय से ज्यादा रिश्ता गहरा हो जाता है ... जैसे बचपन से जानते हों ... उनकी गजलों, रचनाओं से बना सम्बन्ध इतना आत्मीय है की उनके जाने का विश्वास आज भी नहीं हो रहा ...
ReplyDeleteसमझ से परे है दर्द कैसे बयाँ करू ... सादर नमन है मेरा ...
अंतर हृदय से निकले आपके ये उद्गार मर्मस्पर्शी सत्य हैं , कमोबेश सब यहीं कहना या लिखना चाह रहे हैं,आपने अपनी अतुल्य पोस्ट में सागर समेटा है।
ReplyDeleteसाधुवाद।
बर्षा जी अपनी ग़ज़लों में अपनी विभिन्न अभिव्यक्तियों में सदा अमर रहेंगी साहित्य जगत का ध्रुव तारा बन कर ,हम सभी के दिलों में ।
सादर।
🙏🙏🙏
Delete