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Thursday, 9 April 2020

दिशाहीन सफर

कर चुके बहुत, दिशाहीन सा ये सफर!

कम थे, बहुतेरे, सफर के सवेरे,
दिन के उजालों में, गहन मन के अंधेरे,
ठहरे समुन्दरों में, लहरों के थपेरे,
मुस्कुराहटों में, समाया डर,
चह-चहाहटों के, बेसुरे से होते स्वर,
खुशी की आहटों से, हैं बेखबर,
न थी सूनी, इतनी ये सफर!

चल चुके बहुत, अन्तहीन सा ये सफर!

होती रही, शून्य सी, चेतनाएँ,
हैं प्रभावी, काम, मोह, मद, लालसाएँ,
हैं, फिजाओं में घुली, वासनाएँ,
प्रगति के, ये कैसे हैं चरण?
छलते है जहाँ, मनुष्य के आचरण,
हैं राहें कर्म की, बातों से इतर,
दिशाहीन, कैसी ये सफर!

कर चुके बहुत, दिशाहीन सा ये सफर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)